Book Title: Virchand Raghavji Gandhi Ka Jivan Charitra
Author(s): Shyamlal Vaishya Murar
Publisher: Jainilal Press

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६ ) पालीताणा राज्य कर्ता के पास चली गई । इस समय वहां जाने वाले श्वेताम्बर यात्रियों पर कर लगाने के सम्बन्ध में निश्चय हुआ । यह कर बड़ा त्रास दायक था । पर्वत की रक्षा के बहाने यह कर वसूल कियाजाता था पर्वत का संरक्षण करने को प्रत्येक यात्री पर दो रुपया कर वसूल किया जाने लगा इस से बड़ी गड़बड़ फैली । इसके लिये मि० वीरचन्द उपाय खोजने लगे । रक्षण करने का समाधान इस समय काठियावाड़ के पोलिटीक न एजन्ट ( जो वर्तमान समय में एजन्ट टू दी गवर्नर कहे जाते हैं ) कर्नल वाटसन थे और बम्बई के गवर्नर प्रसिद्ध लार्ड रे थे। कर्नल वाटसन ने श्रावकों के प्रतिनिधियों को पालीताणा बुलावाया, इस समय प्रतिनिधियों की ओर से मि० वीरचन्द ने सारी हकीकत निवेदन की । महान प्रयास से ठाकुर साहब मानसिंह और जैन समुदाय की बीच यह शर्तनामा करार पाया कि ( १ ) दो रुपये का कर उठा दियो जायगा, उसके बदले में जैनी लोग ठाकुर साहेब को पंद्रह हजार रुपया देवेंगे । ( २ ) यह शर्तनामा सन् १८८६ के अप्रैल मास से चालीस वर्ष तक रहेगा । ( ३ ) इन चालीस वर्ष के बाद रकम में फेर फार करने का दोनों को अधिकार है। दोनों स्वतंत्र हैं। दोनों ओर की दलीलों को ध्यान में लाने के पश्चात् फेर फार को मंजूर अथवा ना मंजूर करने का अधिकार ब्रिटिश सरकार अपने हाथ में रखेगी । इस प्रकार वीरचन्द ने अपनी प्रभावशाली कर्तृत्व शक्ति से सब जैनियों को अंजित कर सर्वत्र आनन्द फैला दिया | For Private and Personal Use Only

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