Book Title: Virchand Raghavji Gandhi Ka Jivan Charitra
Author(s): Shyamlal Vaishya Murar
Publisher: Jainilal Press

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) लाड रे को मान पत्र गवर्नर साहब काठियावाड़ गये थे। उस समय शत्रुञ्जय तीर्थ की भेंट करते समय उनको १५ वीं दिसम्बर १८८६ई. को तीर्थ स्थान पर मान पत्र समर्पित किया गया। व्यवसाय इसके पीछे कोई स्थायी व्यवसाय करने की ओर श्री वीरचन्द काध्यान गया। सोलिसिटरी नामक उच्च परिक्षा पास करने की ओर उनका लक्ष्य गया । सोलिसिटरी का पेशा बड़ाही श्रम दायक होता है। साथही उसमें समयभी नहीं मिलता। दिन रात श्रम करते रहने और फरसत न पाने के लिये यह पेशा ऐसा बुरा है कि वर्णन नहीं होसक्ता परन्तु इसके साथही यह बड़ी इज्जत ओर अधिक रु० पैदा करन का व्यवसाय है, जिसके कारण इसके उपरोक्त दो कष्ट नहीं खटकते । इस कथन से यह न समझ लेना चाहिये कि उच्च, नीतिवान और धर्मिष्ट पुरुषों को इस व्यवसाय में ही नहीं पड़ना चाहिये क्योंकि बहुत से इस व्यवसाय को करते हुए भी सार्वजनिक सेवा करने को सबसे अधिक समय लगाते हैं। सरकारी सोलिसिटर बनगे की इच्छा से श्री वीरचन्द " लिटिल रौंड कम्पनी" में सन् १८८६ में आर्टिकिल्ड क्लार्क होगये। औ वहां वे सोलिसिटरी परीक्षा के लिये आवश्यक ज्ञान सम्पादन करने लगे । अहमदावाद और धम्बई के जैनी अभी इन्हे भले न थे। जैन समाज के लिये अभीतक जो जो उत्तम कार्य उन्हों ने किये थे वे सब वहां के जैनियों के हृदयों पर अंकित थे। अतएव For Private and Personal Use Only

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