Book Title: Vidyabhushan Granth Sangraha Suchi
Author(s): Gopalnarayan Bahura, Lakshminarayan Goswami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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लताके अभाव में वह कार्य संयुक्तप्रान्त तक ही कर पा रही थी । कलकत्ता की 'रॉयल एशियाटिक सोसायटी केवल संस्कृतग्रन्थों पर अपना ध्यान केन्द्रित किये हुए थी । अवधी और व्रजभाषा के महत्वपूर्ण ग्रन्थों की खोजका काम उत्तर भारत यथाशक्य कर रहा था और परिणामस्वरूप इन दोनों भाषायों का बहुतसा साहित्य प्रकाश में आता जा रहा था । प्रयत्न नहीं हो रहा था तो वह राज"स्थान में । विद्याभूषणजी इस स्थिति से चिन्तित हो उठे । उनका हृदय क्रन्दन कर उठा । परन्तु, अकेले कितना करते ? तब उन्होंने ग्रपने साहित्यिक मित्र बालाबख्शजी बारहरुको प्रेरित कर चारणों, भाटों, राजमहालयों और जनसामान्यके समीप अस्तव्यस्त रखे हुए उपेक्षाग्रस्त डिंगल और पिंगल साहित्यके उद्धार का पुनः शक्तिभर प्रयत्न किया । प्रकाशन निमित्त सात सहस्र रुपयोंकी स्थायी निधि नागरीप्रचारिणी सभा, काशी में स्थापित करवायी । राजस्थानी भाषाकी संपन्नताको साहित्यिकजगत् के समक्ष लानेके लिए वह सदैव उत्कण्ठित रहते थे । इस दिशा में उन्होंने एक वृहद् राजस्थानी कोष के निर्माणको परमावश्यक समझते हुए जोधपुरके श्रीयुत् सीतारामजी लाळसको सन् १९३२में उत्प्रेरित किया तथा बहुतसी संदर्भ सामग्री भी प्रदान की । वह कोष प्रव श्री लाळसजीके कर्तृत्व संपादित होकर प्रकाशित हो रहा है । इसी प्रकार सन्त साहित्यके अक्षय भंडारका प्रकाशन भी उनका मनोवाञ्छित था, जिसके लिए उन्होंने तदानीन्तन उदीयमान साहित्यिकों की एक समिति बना कर 'सन्त ग्रन्थमाला' की योजना - सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली के तत्वावधान में चालू की थी ।
हस्तलिखित ग्रन्थोंकी अन्वेषणा करते रहना उनका रुचिकर कार्य था । किसी प्रयोजनसे कहीं गये हों, वहीं समय निकाल कर ग्रन्थोंकी खोज वह करते रहते थे । शेखावाटी और तोरावाटी, जहां वह दीर्घकाल तक राजकीय अधिकारीके रूपमें रहे थे, से निरन्तर ग्रन्थचयन करते रहते थे । जहां कहीं उत्तम ग्रन्थ मिला, उसे मुंहमांगे दामों पर खरीद कर अपने संग्रहालयकी शोभा बढ़ाते एवं शोधकार्यके लिए नवीन उत्साहसे जुट जाते थे । उनकी इस विशुद्ध साहित्यिक अभिरुचिसे उत्प्रेरित होकर बहुतसे विवेकशील सन्त महन्त और सद्गृहस्थ भी उन्हें सदुपयोगार्थ अपनी प्रतियां और गुटके दे दिया करते थे । विद्याभूषणजीने ऐसे कृपालु समर्पकों का उल्लेख यथास्थान अपनी सूची में किया है । कतिपय ऐसे ग्रन्थ, जो उन्हें स्थायी संग्रहके लिए नहीं मिल पाते थे, उनकी प्रतिलिपियां वह अपने व्यय से निरन्तर करवाते रहते थे । ग्रंथ-सूची में इस प्रकार के अनेक प्रतिलिपिकर्ताओं का उल्लेख मूल ग्रंथके मूल स्रोतके साथ अंकित है ।
ग्रन्थप्राप्तिविषयक उनके उत्कट अनुरागका वर्णन करते हुए श्रीयुत रामगोपालजी पुरोहितने एक मर्मस्पर्शी घटना सुनाई, जो इस प्रकार है
जयपुरमें, जहां ग्राजकल " मानसिंह हाई वे" है, वहां पहले अठवाड़ा बाजार