Book Title: Vidyabhushan Granth Sangraha Suchi
Author(s): Gopalnarayan Bahura, Lakshminarayan Goswami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 15
________________ [ ५ ] निधिकी रत्नरश्मियां सम्भाले हुए वह कौस्तुभमणिसमुल्लसित विष्णु के समान विबुधों के मध्य में शोभायमान रहे हैं । उन्होंने ऐसी अनेक भ्रान्तियोंको निर्मूल किया जो सन्तसाहित्य और साहित्यकारोंके रचना, स्थान, देश, काल एवं प्रक्षिप्तांश श्रादिसे सम्बन्ध रखती थीं । सुन्दरग्रन्थावली और व्रजनिधिग्रन्थावलीकी बृहत् शोधपूर्ण भूमिकाओं को पढ़ कर विद्याभूषणजीके गम्भीर अनुशीलन, प्रौढ़ पाण्डित्य और विलक्षण सामर्थ्यका दुर्गाढ़ परिचय प्राप्त किया जा सकता है । " मीरा बृहत् पदावली" एवं "पत्रावली" को राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर द्वारा प्रकाशित करनेका उपक्रम चालू है । विद्याभूषणजीका इतिहास - प्रेम प्रसिद्ध था । वह कहा करते थे कि इतिहास में मिथ्याको स्थान नहीं । ऐसे साहित्यकार के लिए, जो सत्यसेवाको ही लक्ष्य मानता है, इतिहाससे उत्तम वस्तु लाभ करना कठिन है । स्वभावतः सत्यसेवी होने के नाते वह ऐतिहासिक शोधप्रसंगोंको प्रामाणिकताकी अकाट्य कसौटी पर कस कर ही मन्तव्य के रूपमें स्थिर करते थे । इनके द्वारा लिखित 'फर्जन्दे दौलत, महाराजा श्री मिर्जाराजा मानसिंहजी प्रथम', 'मिर्जाराजा जयसिंह' एवं ग्रन्य ऐतिहासिक प्रसंग स्थायी सन्दर्भ के रूपमें विद्वानोंके द्वारा मान्य किये गये हैं । इतिहासके विषय में इनको अधिकारी विद्वान् मान कर ही देशके अन्यान्य इतिहासज्ञ उनसे लिखापढ़ी करके अपना मार्गदर्शन प्राप्त किया करते थे । जयपुरराज्यकी ओर से देश के प्रसिद्ध इतिहासकार सर यदुनाथ सरकारको राजकीय ऐतिहासिक पुरालेखों के संग्रहके आधार पर जयपुरराज्यका इतिहास लिखनेके लिए आमन्त्रित किया गया था । श्रीसरकारने कितने ही वर्षों तक उक्त पुरालेखोंका अनुशीलन और मनन करनेके पश्चात् सम्बन्धित इतिहास के बहुत से ग्रध्याय लिखे भी थे । किन्तु, किन्हीं कारणों से वह अन्तिम रूप नहीं प्राप्त कर सका । जयपुरके वर्तमान महाराजा साहब श्री सवाई मानसिंहजीने पुरोहितजी महाराजको ग्रामन्त्रित कर उक्त ग्रसमाप्त कार्यको पूर्ण करनेका अनुरोध किया । स्वर्गीय विद्याभूषणजी उस समय मीरांवृहत् पदावलीके कार्य में एकान्त भावसे संलग्न थे । इसलिए उन्होंने निवेदन किया कि मीरासम्बन्धी कार्यको पूरा करके वह इतिहासके कार्यमें हाथ लगा सकेंगे । परन्तु महाराजा साहबका ग्राग्रह अनुरोध चलता रहा कि मीराके कार्यको स्थगित करके भी इतिहासको पहले पूरा करें । अन्ततो गत्वा राजभक्त पुरोहितजीको यह स्वीकार करना पड़ा । मीरासाहित्यसम्बन्धी सामग्री को वेष्टनों में बांध कर रख दिया गया और वह इस इतिहास शोधन-सम्पादनके कार्य में लग गये । उन्होंने सर यदुनाथ सरकार द्वारा लिखित अध्यायोंको पढ़ा और उनमें श्रावश्यक तथ्योंका समावेश प्रामाणिक मूल कागजात के आधार पर

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