Book Title: Vidyabhushan Granth Sangraha Suchi
Author(s): Gopalnarayan Bahura, Lakshminarayan Goswami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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[ ८ ] उन्होंने कठोर शपथ रखते हुए इस आयोजनको तत्क्षण रद करनेके लिए.. अपना अस्वीकृतिमन्तव्य दृढ़ताके साथ लिख भेजा। उनके शब्दोंमें कहें तो, ... पुरोहितजीने इस प्रस्तावको विनयके साथ दीन प्रार्थना करते हुए ठुकरा दिया। ... परन्तु, सभा के अन्य सभी कार्यों में विद्याभूषणजीने संलग्नमनस्कतासे आजीवन. सहयोग दिया। गीताके स्थितप्रज्ञलक्षणोंसे विभूषितः विद्याभूषणजीका विनय, त्याग, समभाव और सहिष्णुता चिरकाल तक अविस्मरणीय रहेंगे।. ...
अन्तमें, एक दिव्यदर्शनकी झांकी प्रस्तुत करनेका लोभ कलम संवरण नहीं.. कर पा रही है। वात अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलनके जयपुर अधिवेशनके प्रथम दिनकी है । एक छह फीट लम्वे, आजानुबाहु, तेजस्वी, गौरवर्ण .. तुषारस्नातश्वेतपुंसरस्वतीप्रतिम वृद्ध पुरुष, जिन्होंने चूड़ीदार पायजामा, भव्य .. श्वेत अंगरखा, गुलावी पगड़ी और कंधे पर सांगानेरी उत्तरीय पहना हया था, सहारेके लिए हाथमें मूठदार छड़ी थामे हुए मंचके एकान्त कोनेमें चुपचाप .... आकर विराजमान हो गये। यह माननीय विद्याभूषणजी थे। सम्मेलन का सम्मर्द था। बहुत जन आ जा रहे थे। कोलाहल वढ़ रहा था। तभी श्रद्धेय श्रीपुरुषोत्तमदासजी टंडन मंच पर आये । वह पुरोहितजीके यश:सौरभके मधुव्रत... थे परन्तु, साक्षात्कार सुरभित श्वेत कमलके भव्य पार्थिव व्यक्तित्वका अभी नहीं हआ था । विद्याभूषणजीने भी टंडनजीको सुना था, देखा नहीं । अव जैसे ही टंडनजीको पता चला कि विद्याभूषणजी आये हुए हैं, वह उनकी ओर द्रुतगतिसे .. मिलनोत्सुक होकर चले । फिर तो श्याम सलौने टंडनजी और तपारधौत विद्याभूषणजी एक-दूसरेसे इस प्रकार लिपट गये कि जैसे समान-उद्देश्यपथगामिनी यमुना-गंगाकी धाराएं अन्तश्छन्न सरस्वतीको लिये संगम पर एक हो गई हों।...
वह व्यवितत्व, वह विभूतिभूषित महासत्व अपनी जीवनयात्राके अडिग ... पदचिह्नोंको साहित्यके राजमार्ग पर, सृजनके मणिदीपकोंकी अक्षयपंक्ति- अक्षरस्नेहसे जगमग कर अव प्रस्थान कर गया है । शेष है उसकी अक्षरसम्बद्ध कीर्ति, जो हमारे श्रुतिपुटों पर अमृतलहरियोंके शत-शत उमिभंग तरंगित कर रही है, करती रहेगी। विद्याभूषणजी यदि अपने श्रमस्वेदपरिप्लुत उपक्रान्त ग्रन्थोंको... (मीरा, जयपुर राज्यका इतिहास प्रभृतिको) स्वयंकी आँखोंसे मुद्रित, प्रकाशित.. एवं सम्पन्न देख पाते तो उनसे अधिक तृप्तिलाभ साहित्यिक सहृदयोंको ही होता, परन्तु अब तो उनकी पुण्य स्मृतिके काननमें ही ये सदावहारी कुसुम खिलखिला - कर विद्याविनयभूपण पुरोहित हरिनारायणजीकी कीर्तिमंजरियोंको विकीर्ण करते : . रहेंगे । एवमस्तु ।