Book Title: Vidyabhushan Granth Sangraha Suchi
Author(s): Gopalnarayan Bahura, Lakshminarayan Goswami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान-विद्याभूषण-ग्रन्थ-संग्रह-सूती ] ...
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॥ ७७
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..' ग्रन्थनाम
' कर्ता
।
लिपिसमय
क्रमाङ्
पत्रसंख्या
विशेष विवरण आदि
१८वीं.श.५३६-५३७
५३७-५३८ दादूजीकी स्तुतिके हैं। ५३८वां ५३८-५४१ ५४१-५४२ सब ६ प्रारती हैं।
(७४) । (१४०) चैनजीकी साखी २० चैनजी
(१४१) चैनजीके सवैया १४ (१.४२.) चैनजीका कड़खा १० छन्द (१४३) टोलाजीका पद २४ । टोलाजी (१४४) आरती संग्रह (सिन्धी) अनेक कवि
(१) दूजण (२) वखना (३) जगजीवन
(४) नरवद (१४५) बखनाके पद ४१.
वखना (१४६) बखनाजीकी साखी १६ (१४७) साधुजीका पद २ साधुजी (१४८) पूरणजीका पद १ पुरणजी (१४६) दूजरणजीका पद ६ (१५०) दूजणजीकी साखी ८ (१५१) जगजीवनजीका पद ४ जगजीवन (१५२) जगजीवनजीको साखी १०० (१५३) जैमलजीकी साखी २४२ । जमल (१५४) जैमलजीका पद ४ (१५५) रज्जबजीका पद ३, साखी ३ / रज्जव (१५६) रज्जबजीके सवैया ५४ ,
५४२-५५१ ५५१-५५२ ५५२वां
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दूजणजी दूजगजी
५५२-५५३ / उत्तम हैं । 'गुरु दादूसिंह पाया पाया रे।' ५५३वां ५५३-५५४ ५५४-५५७ | विरहका अङ्ग है। ५५७-५६६ / कई अंग हैं। ५६६वां ५६७वां ५६७-५७२ | दादूजीके जीवन-चरित्रसे सम्बद्ध अच्छे संवैया
हैं। रज्जब वाणीमें भी देखो।