Book Title: Vidyabhushan Granth Sangraha Suchi
Author(s): Gopalnarayan Bahura, Lakshminarayan Goswami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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* श्रीः *
स्वर्गीय विद्याभूषण पुरोहित श्रीहरिनारायणजीका संक्षिप्त जीवन-वृत्त'
शुभ मिति माघ कृष्णा चतुर्थी, रविवार, विक्रम संवत् १९२१के पवित्र प्रभातमें उषाकी लावण्य प्रभाके ग्रञ्चलसे जयपुर के राज्यप्रतिष्ठित पारीककुल-" पूषण विद्याभूषण श्रीहरिनारायणजी पुरोहितका श्रवतरण हुआ । राजस्थानके साहित्याकाश में यह सूर्य निरन्तर एकाशीतिवर्षपर्यन्त प्रभा विकीर्ण कर साहित्यसाधनाके सतरंगी शक्रचाप बनाता रहा। स्वर्गीय विद्याभूषणजीके जन्म, जीवन और मृत्यु तीनों ही अपनी उज्ज्वल भूमिकामें अप्रतिम रहे । उनकी ज्ञानप्रभानें इतिहास और सन्त- साहित्यकी भ्रांतिनिशाके गहन आवरणोंको चीर कर प्रामाणिकताका प्रक्षय प्रालोक प्रदान किया । वे व्यक्ति, जिन्हें उनको देखने का सौभाग्यलाभ हुआ है, सदैव उन्हें स्मरण करते रहेंगे और वे भी, जो उनकी अक्षरसम्बद्धकीर्तिके अवगाहक हैं, उनके पार्थिव प्रभावकी कचोट नहीं मिटा पाएंगे ।
स्वर्गीय विद्याभूषणजीके शिक्षाकाल में अंग्रेजीविशेषज्ञ अंगुलिपरिमेय ही थे और उनमें भी इनका नाम सम्मानके साथ लिया जाता था । एफ० ए० और बी० ए० परीक्षाओं में उन्होंने सर्वाधिक योग्यता के परिणामस्वरूप "लाई नार्थ ब्रुक" पदक एवं कालेजके सर्वोत्तम चरित्रवान् तथा मेधावी छात्र होनेके फलस्वरूप "लार्ड लेंस डाउन" पदक प्राप्त किये । शिक्षा समाप्ति के पश्चात् वि० संवत् १९४८से जयपुरराज्यकी सेवा अंगीकार कर उन्होंने निरन्तर चालीस वर्ष पर्यन्त विभिन्न प्रशासनिक उच्च पदों पर कार्य किया । इस अन्तर में वह नाजिम, सी. आई.डी. इंस्पेक्टर, मोहतमिम जनानी ड्योढ़ी एवं चैरिटी सुपरिटेंडेंट के पदों पर कुशलतापूर्वक प्रतिष्ठित रहे । राजकीय कार्यरत रहते हुए उन्हें शेखावाटी और तोरावाटीमें (तत्कालीन जयपुर राज्यके अधीनस्थ सीकर एवम् खंडेला प्रभृति ठिकानोंके प्रदेश ) रहनेका अवसर प्राप्त हुना जहां उन्होंने अनेक गोशालाओं और पाठशालानों की स्थापना की ।
१. जयपुरसे प्रकाशित दिसम्बर, जनवरी सन् १९४५, ४६के 'पारीक' मासिक पत्रके 'विद्याभूषण विशेषांक' एवं स्वर्गीय विद्याभूपणजीके आत्मज श्रीयुत रामगोपालजी पुरोहित, बी. ए., एल-एल.वी.के. मौखिक वक्तव्योंके आधार पर लिखित ।– (सं.)