Book Title: Vairagya Shatakadi Granth Panchakam Author(s): Kesharmuni Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund View full book textPage 7
________________ जय शान्तिः-श्रीशान्तिः प्रौढप्रातिभमन्दरेण मथितात् सिद्धान्तदुग्धोदधेः, सद्बोधामृतमाथ्य यः सुमनसं चके जन स्वाचितम् । दुष्कर्माद्रिभिदैकपेशलतपोवज्रायुधं धारयन् , जीयादेष सुपर्वनाथसमतः श्रीसिद्धिसूरीश्वरः ॥ किञ्चिद्वक्तव्य। USIS शेठ देवचन्द लालभाई जैनपुस्तकोद्धार फंडमांथी, पृथक् पृथक् मुनिवयाँथी गुम्फित थयेला वैराग्यशतकादि पांच ग्रन्थो। सिद्धिदातानी' कृपावडे "ग्रन्थाङ्क ९१" तरीके प्रसिद्ध करवा शक्तिशाली थाउं छु. ग्रन्थ अने ग्रन्थकारो सम्बन्धे संशोधक मुनिवर्य श्रीबुद्धिसागर-गणिये विस्तारथी आलेखेलुं होबाथी ते ज वस्तुने फरी मूकवानु प्रयोजन देखातुं नथी. संशोधक मुनिराज ए परमप्रभाविक वचनसिद्धपुरुष मुनिराज श्रीमन्मोहनलालजी महाराजश्रीना मुख्य शिष्य महान तपस्वी आचार्य श्रीजिनयशःसूरिजी (प्रसिद्ध नाम श्रीजसमुनिजी) महाराज के जेओ ओपन ५३ उपवासनी महान तपस्या करी प्रभुश्रीमहावीरदेवनी निर्वाणभूमि पावापुरीमा स्वर्गवासी थया हता, तेमना आज्ञानुवर्ती अने श्रीमन्मोहनलालजी महाराजना ज शिष्यरत्न श्रीहेममुनिजी महाराजनां शिष्य स्वर्गीय अनुयोगाचार्य श्रीमत्केशरमुनिजी महाराजना शिष्य छे. एओश्रीये लघुवयमा मात्र दश १०13 वर्षनी उमरे मारवाडमा चवां गाममा दीक्षा अंगीकार करी हती. संशोधक लघु वये पण शास्त्रादिपठनमा अति उत्साही अने उद्यमवंत RUSSOS%*%** Jan Educatio n al For Private & Personal use only ainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 172