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संगीत व वास्तु पुस्तक (PDF) मुफ्त डाउनलोड करें ( 4 ) देखें www.dwarkadheeshvatu.com रहकर दया भाव आ जाता है और उनके मन में जो हमारे प्रति पहले दया भाव रहता था वह श्रद्वा भाव में बदल जाता है। इसी तरह जैसे बेटा-बेटी, छोटे भाई-बहन, शिष्य व उसका पुण्य व आध्यात्म हमसे अधिक हो जाता है तो उनके प्रति हमारे मन में श्रद्वा भाव आ जाता है और उनके मन में हमारे लिए दया भाव आ जाता है। यह ईश्वरीय विधान है। इससे यह सिद्वहोता है कि पूरी श्रृष्टि में पुण्य व आध्यात्म ही एक सबसे बड़ा धन है। यदि हम किसी समिति के अध्यक्ष होने पर किसी व्यक्ति को किसी आध्यात्मिक कार्य के लिए जैसे मंदिर सेवा, भगवत या राम कथा इत्यादि के लिए नौकरी पर रखते हैं, सांसारिक रूप से वह हमारा सेवक है किन्तु क्योंकि उसका आध्यात्म हमसे काफी अधिक होने के कारण हम उसके प्रति श्रद्वा रखते हैं और सदैव उसका सम्मान व चरण वंदना करते हैं।
____ जिस व्यक्ति का आध्यात्म सबसे अधिक होगा वह मुखिया के स्थान पर आ जाएगा। वास्तु के अनुसार वह उच्च स्थान कमशः साउथ-वेस्ट, साउथईस्ट व नार्थ-वेस्ट भागों में ही रहेगा। सांसारिक रूप से चाहें वह रिश्ते में छोटा ही क्यों न हो।
जिस प्रकार बेडरूम में प्रत्येक संतान व सदस्य का स्थान निर्धारित होता है उसकी प्रकार यदि घर के मुखिया के कमरे के किसी कोने में दोष है तो उस कोने से सम्बन्धित संतान पर इसका प्रभाव लागू होगा। यदि प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग कमरों में रहता है तो उन पर उनके कमरों का वास्तु भी लागू होगा।
ऊपर बताए गए सभी नियम प्रकृति द्वारा निर्धारित हैं, इसमें किसी भी प्रकार का कोई संदेह नहीं है। यदि आप इन नियमों की सत्यता को जाँचना चाहते हैं तो किसी भी भवन को देखे, प्रत्येक भवन में मुखिया व बड़े सदस्य साउथ-वेस्ट, साउथ-ईस्ट व नार्थ-वेस्ट भागों में ही निवास करेंगे। छोटे सदस्य उत्तर, पूर्व व नार्थ-ईस्ट भाग में ही रहेंगे। यह भी प्रकृति द्वारा निर्धारित एक नियम है।
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छोटे सदस्यों का स्थान
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मुखिया सदस्यों व बड़े का स्थान सदस्यों
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बड़े सदस्यों का स्थान
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यह पुस्तक श्री द्वारकाधीश धार्मिक समिति के माध्यम से प्रभू जी के श्री चरणों में समाज के लिए सादर समर्पित है। यदि पुस्तक में कोई त्रुटि रह जाती है तो इसके लिए माफी चाहते हैं व आपके सुझाव सादर आमंत्रित हैं।
(श्री द्वारकाधीश धार्मिक समिति)