Book Title: Tulsi Prajna 2002 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 4
________________ जीवन का आधार - अहिंसा भीयाणं पिव शरणं, पक्खीणं पिव गयणं, विसियाणं पिव सलिलं, सुहियाणं पिव असणं । समुद्दमज्झे व पोतवहणं चउप्पयाणं व आसमपयं, दुहट्टियाणं व ओसहिवलं अउवीमज्झेव सत्थगमणं ॥ भयभीतों को जैसे शरण, पक्षियों को जैसे गगन, तृषितों को जैसे जल, भूखों को जैसे भोजन, समुद्र के मध्य जैसे जहाज, रोगियों को जैसे औषध और वन में जैसे सार्थवाह का साथ आधारभूत होता है वैसे ही अहिंसा प्राणियों के लिए आधार - प्रतिष्ठान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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