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ध्यान देने योग्य है कि 'नमिसाधु' के मतानुसार संस्कृत की आधारभूत भाषा अथवा कहिए कि संस्कृत की व्युत्पत्ति प्राकृत से है। यह बात इस तरह स्पष्ट हो जाती है कि बौद्धों ने जिस प्रकार मागधी को सब भाषाओं के मूल में माना है, उसी प्रकार जैनों ने अर्धमागधी को अथवा वैयाकरणों द्वारा वणित आर्षभाषा को वह मूल भाषा माना है जिससे अन्य बोलियां और भाषाएं निकली हैं।
अर्धमागधी में मागधी और शौरसेनी का सम्मिश्रण माना है। डॉ. पिशल के अनुसार आर्ष और मागधी भाषा एक ही है। किन्तु निशीथचूर्णिकार के अनुसार अर्धमागधी में केवल शौरसेनी की ही नहीं किन्तु अठारह देशीभाषागत विशेषताएं उपलब्ध हैं । इसलिए जिसे उत्तरवर्ती वैयाकरणों ने आर्ष कहा है, वह व्याकरण के नियमों से सर्वथा अनियंत्रित भी नहीं है और लौकिक संस्कृति की भांति बहुत नियंत्रित भी नहीं है । आर्ष-प्रयोग प्राचीन व्याकरण से नियंत्रित हैं। उन नियमों की जानकारी वैदिक व्याकरण के नियमों के संदर्भ में की जा सकती है।
अनुयोगद्वार के चूर्णिकार ने शब्द-प्राभृत या पूर्वशास्त्रों के अन्तर्गत व्याकरणों का निर्देश किया है । इससे ज्ञात होता है कि आगमसूत्रों की रचना के समय जो व्याकरण थे, उनके आधार पर आगमसूत्रों के प्रयोग किए गए। भाषा का प्रवाह और उसके प्रयोग काल-परिवर्तन के साथ-साथ परिवर्तित होते रहते हैं। पन्द्रह सौ वर्ष बाद बनने वाले व्याकरणों में उन पूर्ववर्ती व्याकरणों के नियमों का अनुवर्तन संभव नहीं होता। इसीलिए प्राचीन प्रयोगों को 'आर्ष' कहने की मनोवृत्ति निर्मित हुई। आगमसूत्रों में प्राचीन व्याकरणों के कुछेक संकेत सौभाग्य से आज भी उपलब्ध हैं । उनके आधार पर हम अलाक्षणिक प्रयोगों को कसौटी पर कस सकते हैं।
स्थानांग सूत्र में शुद्धवचन अनुयोग के दस प्रकार बतलाए हैं१. चंकार अनुयोगचंकार शब्द के अनेक अर्थ हैं(क) समाहार-- संहति, एक ही तरह हो जाना । (ख) इतरेतरयोग--मिलित व्यक्तियों या वस्तुओं का संबंध । (ग) समुच्चय- शब्दों या वाक्यों का प्रयोग । (घ) अन्वाचय---मुख्य काम या विषय के साथ में गौण काम का विषय जोड़कर । (ङ) अवधारण----निश्चय । (च) पादपूरण । २. मंकार अनुयोग-इस अनुयोग के द्वारा मकार का विधान किया गया है। यह समस्त और असमस्त पदों में होता है ।
___ जेण+एवजेणामेव, तेणा+एव=तेणामेव । प्राकृत व्याकरण के अनुसार इनके 'जेणेव' 'तेणेव' रूप बनते हैं। 'छंदनिरोहेण उवेइ मोक्खं' (उत्त० ४१८)- यहां समस्त पद में अनुस्वार किया गया है । 'अन्नमन्नेण' (उत्त० १३।७) यहां भी मकार विहित है।
तुमसी प्रक्षा
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