Book Title: Tulsi Prajna 1992 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati
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२९. सौधर्मकल्पः प्रथमोपदिष्ट ऐशानकल्पश्च पुनद्वितीयः ।।
सनत्कुमारो द्युतिमांस्तृतीयो माहेन्द्रकल्पश्च चतुर्थ उक्तः ।। ब्राह्य पुनः पञ्चममाहुरास्तेि लान्तवं षष्ठमुदाहरन्ति । स सप्तमः शुक्र इति प्ररुढः कल्पः सहस्रार इतोइष्टमस्तु ।। यमानतं तन्नवमं वदन्ति स प्राणतो यो दशमस्तु वर्ण्यः । एकादशं त्वारणमामनन्ति तमारणं द्वादशमच्युतान्तम् ।।
-वरांगचरित' ९/७-८-९ ३०. दशाष्टपञ्चद्वादश विकल्पाः कल्पोपपन्नपर्यन्ताः ।
-तत्त्वार्थसूत्र (विवेचक-पं० फूलचंद्रशास्त्री)४/३ पृ० ११८ देखें-४/१९ में १६ कल्पों का निर्देश है । ३१. वारस कप्पा के ई केई सोलस वदंति आइरिया ।।११५।।
सोहम्मीसाण सणक्कुमारमा हिंदबम्हलंतवया। महसुक्कसहस्सारा आणदपाणदयआरणच्चुदया ।।१२०।।
-तिलोयपण्णत्ती आठवां अधिकार । ३२. ततो हि गत्वा श्रमणाजिकानां समीपमभ्येत्य कृतोपचाराः ।
विविक्तदेशे विगतानुरागा जहुर्वराङ्गयो वर भूषणानि ।।९३।। गुणांश्च शीलानि तपांसि चैव प्रबुद्धतत्त्वाः सितशुभ्रवस्त्राः । संगृह्य सम्यग्वरभूषणानि जिनेन्द्रमार्गाभिरता बभूवुः ॥९४॥
-वरांगचरित २९,९३-९४ ३३. आवसधे वा अप्पाउग्गे जो वा महढिओ हिरिमं ।
मिच्छजणे सजणे वा तस्स होज्ज अववादियं लिंगं ।।७८।।
आगे इसकी टीका देखें-'अपवादिकलिंग'-सचेल लिंग भगवती आराधना यानी अपराजित टीका पृ० ११४ । ३४. हेमन्तकाले धृतिबद्धकक्षा दिगम्बरा ह्यभ्रवकाशयोगाः ।-वरांगचरित, ३०/३२ ३५. निरस्तभूषाः कृतकेशलोचाः ।
-वही ३०/२ ३६. विशीर्ण वस्त्रावृतगात्रयष्टयस्ताः काष्ठमात्र प्रतिमा बभूवुः । -वही, ३१/१३ ३७. (अ) इत्थीसु ण पावया भणिया ।
-सूत्रप्राभृत २५ (ब) दंसणणांण चरित्ते महिलावग्गम्मि देहि वि वीसट्ठो । पासत्थ वि हु णियट्ठो भाव विणट्ठो ण सो समणो ।।
-लिंगपाहुड २० ३८. (अ) नरेन्द्रपत्न्यः श्रुतिशीलभूषा..."प्रतिपन्नदीक्षास्तदा बभूवुः
परिपूर्ण कामाः ।।३१/१।। दीक्षाधिराज्यश्रियमभ्युपेता॥३१/२।। (ब) नरवरवनिता विमुच्य साध्वीशमुपययुः स्वपुराणि भूमिपालाः ।।२९/९९।। (स) व्रतानि शीलान्यमृतोपमानि..........।।३१/४।। (द) महेन्द्र पत्न्यः श्रमणत्वमाप्य"" ' ..||३१/११३।।
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तुलसी प्रज्ञा
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