Book Title: Tulsi Prajna 1992 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 77
________________ भक्त के उद्रेक में, भक्त-हृदय-कवि, अपने आराध्य की गुण-गरिमा का गान करने लगते हैं-यही गान "स्तुति' बन जाता है। प्रस्तुत परिचय में २१ स्तुति शतकों का विवेचन किया गया है. । जो इस प्रकार है (१) जिनशतकम् -आचार्य समन्त भद्र, (२) सूर्यशतकम् -मयूर भट्ट, (३) चण्डीशतकम्-बाणभट्ट, (४) देवीशतकम्-आनन्दवर्धन, (५) गीतिशतकम्-सुन्दराचार्य, (६) जिनशतकम् -जम्बुगुरु. (७) आर्याशतकन--मूककवि, (८) कटाक्षशतकम् -मूककवि, (९) मन्दस्मितशतकम्-मूककवि, (१०) स्तुतिशतकम्-मूककवि, (११) पादारविन्दशतकम्-मूककवि, (१२) वृन्दावनशतकम् --अज्ञात, (१३) ईश्वरशतकम्-अवतारकवि, (१४) रामशतकम् - सोमेश्वर, (१५) रामशतकम् -केशव, (१६) शिवाशितकम् - महाराष्ट्रीकवि मयूर, (१७) पद्मनाभशतकम्-श्रीस्वाति तिरुनाल रामवर्मा, (१८) खगशतकम् - अज्ञात, (१९) सारस्वतशतकम्-श्रीजीव. देवशर्मा, (२०) शोकश्लोकशतकम् --बदरीनाथ झा, (२१) निरञ्जनशतकम्आचार्य विद्यासागर । परिचय में वैराग्य एवं नीति शतकों की भी विवेचना की गई है। संस्कृत वैराग्यशतकों में वैराग्य की ऐसी निरिणी प्रवाहित हुई है कि सहृदय पाटक "स्व-रस" के पान की ओर स्वतः उन्मुख हो उठता है । यहां आठ वैराग्यशतकों की विवेचना की गई हैं, उनके नाम इस प्रकार हैं (१) समाधिशतकम्-आचार्य पूज्यपाद, (२) वैराग्यशतकम्-भर्तृहरि, (३) वैराग्यशतकम्-पमानन्द, (४) शान्तिशतकम् -शिल्हन मिश्र, (५) सम्यक्त्वसारशतकम्-आचार्य ज्ञानसागर, (६) श्रमणशतकम् -आचार्य विद्यासागर, (७) भावनाशतकम्-आचार्य विद्यासागर, (८) परीषहजयशतकम् -आचार्य विद्यासागर । उत्तर-भाग में १२ नीतिशतकों का परिचय दिया गया है :-(१) नीतिशतकम्भर्तृहरि. (२) भल्लटशतकम् -भल्लट, (३) चाणक्यशतकम्-अज्ञःत. (४) अन्यापदेशशतकम् -- नीलकण्ठदीक्षित, (५) अन्यापदेशशतकम्-मधुसूदन, (६) उपदेशशतकम्-गुमानकवि, (७) अन्योक्तिशतकम् -भट्टवीरेश्वर, (८) दृष्टान्तकलिकाशतकम्-कुसुमदेव, (९) सभा रजशतकम्-नीलकण्टदीक्षित (१०) ब्रह्मचर्यशतकम् -ब्र० मेधाव्रत, (११) गुरुकुलशतकम् - मेधाव्रताचार्य, (१२) नीतिशतकम् --- के० भुजबलीशास्त्री, (१३) सुनीतिशतकम्-आचार्य विद्यासागर । संस्कृत के शृंगारशतक अपने रसमाधुर्य एवं रमणीयता के लिए प्रख्यात हैं । लौकिक जगत् में शृंगार रजस्-प्रधान होता है, लेकिन काव्य जगत् में आकर वही शृंगार, सत्त्व-प्रधान हो जाता है । क्योंकि सत्त्व का उद्रक हुए बिना रसानुभूति हो ही नहीं सकती । संस्कृत शतककारों ने ऐसी रसमाधुरी बिखेरी है कि उसमें स्नपित हो, सहृदय पाठक अपूर्व आल्हाद एवं रमणीयता का अनुभव करने लगता है। अध्ययन में ९ शृंगार-शतकों की भी विवेचना की गई है (१) अमरुकशतकम्-अमरुक, (२) शृंगारशतकम् -भर्तृहरि, (३) श्रृंगारशतकम् -जनार्दन भट्ट, (४) शृंगारशतकम्-नरहरि, (५) सुन्दरीशतकम् - खंण्ड १८, अंक २, (जुलाई-सित०, ९२) १४७ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154