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दो स्कन्धों का होना आवश्यक है ।
परमाणु तथा स्कन्ध को लेकर प्रश्न होता ह कि क्या परमाणु तथा स्कन्ध पुद्गल की पर्याय है ? यदि पर्याय है तब पुद्गल क्या है ? और पुद्गल है तब ये दोनों--परमाणु तथा स्कन्ध-पुद्गल है या कोई एक ? स्कन्ध को शुद्ध पुद्गल नहीं माना जा सकता क्योंकि वह परमाणुओं से उत्पन्न है । अतः यही सिद्ध होता है कि परमाणु ही शुद्ध पुद्गल है । यहां प्रश्न होता है कि फिर पुद्गल मूर्त और अस्तिकाय कैसे हो सकता है, क्योंकि परमाणु जीवों द्वारा इन्द्रियों से ग्रहण नहीं किये जा सकते और न ही परमाणु बहु प्रदेशी होते हैं," तथा जो एक से अधिक प्रदेशों में नहीं रहता वह अस्तिकाय नहीं हो सकता । धर्म अधर्म द्रव्य
पुद्गल द्रव्य या तो गतिशील है या स्थिर है । एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में गमन करने को “गति" कहते हैं, और जो द्रव्य इस "गति" में सहायक है उसे "धर्म" द्रव्य कहते हैं। धर्म द्रव्य उसी प्रकार क्रिया या गति में सहायक है जिस प्रकार मछलियों के गमन या गति में जल सहायक है । " धर्म न तो स्वयं गति करता है और न ही, जो द्रव्य स्वयं नहीं चलते हैं, उन्हें बलपूर्वक चलाता है अपितु जो गतिशील है उनकी गति का उदासीन कारण है ।" धर्म द्रव्य रूप, रस, गंध और स्पर्श से रहित होने के कारण अमूर्त है तथा समस्त लोकाकाश में व्याप्त है और अखण्ड है। यहां प्रश्न है कि जो स्वयं गतिशील नहीं है, वह गति में सहायक कैसे हो सकता है ? दूसरा गति का प्रेरक कारण क्या है ?
पुनः जो द्रव्य चलते हैं वे ही स्थिर होते है४१ अर्थात् जिनमें गमन सम्भव है स्थिरता भी उन्हीं में सम्भव है। किन्तु धर्म गमन नहीं करता है और गमन नहीं करने के कारण उसे स्थिर भी नहीं माना जा सकता है। यहां प्रश्न है कि जो न गति रूप में है और न ही स्थिर रूप में, वो किस रूप में है ? अर्थात् धर्म न गति रूप में है और न स्थिर रूप में तब उसकी सत्ता को कैसे स्वीकार किया जा सकता है।
_ जिस प्रकार धर्म गति में सहायक कारण है उसी प्रकार जो "स्थिरता" में सहायक कारण है वह 'अधर्म" द्रव्य है । ४२ अर्थात् जो स्थिरता सहित पुद्गल और जीव हैं उनकी स्थिरता में सहायक या उदासीन कारण है वही अधर्म है ।" अधर्म द्रव्य सम्पूर्ण लोकाकाश में व्याप्त है, अखण्ड है और रूप, रस आदि गुणों से रहित होने के कारण अमूर्तिक है । गति के प्रेरक कारण की तरह यहां प्रश्न है कि स्थिरता का प्रेरक कारण क्या है ? दूसरा धर्म द्रव्य की तरह अधर्म भी गतिशील नहीं होने के कारण कारण स्थिर नहीं है। और जो न गतिशील है न स्थिर उसकी सत्ता कैसे स्वीकार की जाये ? एक अन्य प्रश्न है कि धर्म तथा अधर्म का आधार क्या है ? अर्थात् ये कहां रहते हैं ? इसके जबाब में कहा गया है कि लोकाकाश ही इनका आधार है। आकाश द्रव्य
जो द्रव्य जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और काल को अवकाश अर्थात् स्थान देता खण्ड १८, अंक २ (जुलाई-सित०, ९२)
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