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श्री समुद्रविजयजी की पटराणी शिवादेवी ने कार्तिक श्री सौरीपर तीर्थ
कृष्णा 12 के रात्रि के अंतिम पहर में तीर्थंकर जन्म
सूचक महास्वप्न देखे । उसी समय शंख का जीव तीर्थाधिराज * 1. श्री नेमीनाथ भगवान, श्याम आठवाँ भव पूर्ण करके शिवादेवी की कुक्षी में प्रविष्ट वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 75 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। हुआ । इस शुभ अवसर पर इन्द्रादि देवों द्वारा च्यवन
2. श्री नेमिनाथ भगवान, श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ, कल्याणक दिवस धूमधाम से मनाया गया । लगभग 105 सें. मी. (दि. मन्दिर) ।
क्रम से नव महीने व आठ दिन पूर्ण होने पर श्रावण तीर्थ स्थल * यमुना नदी किनारे बसे बटेश्वर से शुक्ला पंचमी के शुभ दिन चित्रा नक्षत्र में शिवादेवी ने पहाड़ी रास्ते 1.5 कि. मी दूर प्राचीन गाँव सौरीपुर में। श्याम वर्ण और शंख लक्षण वाले पुत्र रत्न को जन्म
प्राचीनता * श्वेताम्बर शास्त्रानुसार हरिवंश में यदु दिया । छप्पन दिक्कुमारियाँ व इन्द्र इन्द्राणियों द्वारा नाम का प्रतापी राजा हुआ । राजा यदु से यादव वंश प्रभु का जन्म कल्याणक मनाया गया। राजा समुद्रविजयजी चला । राजा यदु के पौत्र सोरी व वीर नामक दो ने भी पुत्र-जन्म की खुशी में राज्य दरबार में बंधुओं ने अपने नाम पर सौरीपुर व सोवीर नगर । जन्मोत्सव का आयोजन किया । शिवादेवी ने गर्भकाल बसाये । सोरी के पुत्र अधंक वृष्णि हुए, जिनकी में अरिष्टरत्नमयी चक्रधारा देखी थी । इसलिए पुत्र का पट्टरानी भाद्रा की कुक्षी से समुद्रविजय, वसुदेव, वगैरह नाम “अरिष्ट नेमि" रखा गया । दस पुत्र व कुन्ती, भाद्री नाम की दो कन्याएँ हुई ।
वर्तमान चौवीसी के बाईसवें तीर्थंकर श्री अरिष्ट नेमि वीर के पुत्र भोजकवृष्णुि हुए । भोजकवृष्णि के पुत्र ।
भगवान हुए, जिन्हें श्री नेमिनाथ भगवान भी कहते उग्रसेन व उनके पुत्र बंधु, सुबंधु व कंस वगैरह 7 भाई
हैं । प्रभु की च्यवन व जन्म कल्याणक भूमि रहने के एवं देवकी व राजुलमती दो पुत्रियाँ हुई । समुद्रविजय सौरीपुर में व उग्रसेन मथुरा में राज्य करते थे ।
कारण यह पावन तीर्थ-धाम बना । समुद्रविजयजी के भाई वसुदेवजी के दो पुत्र श्री कृष्ण पुराने जमाने में यह एक विराट नगरी थी । इनके व बलराम हुए ।
अन्य नाम सोरियपुर व सूर्यपुर भी शास्त्रों में आते
श्री नेमिनाथ जिनालय (श्वे.) सौरीपुर
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