Book Title: Tirth Darshan Part 1
Author(s): Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publisher: Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai

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Page 226
________________ प्रवेश द्वार कोंकण तीर्थ श्री कोंकण तीर्थ तीर्थाधिराज श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान, * पद्मासनस्थ (श्वे. मन्दिर ) | तीर्थ स्थल * बम्बई के निकट थाणा गाँव में टेंभीनाका के बीच जिसे कोंकण शत्रुंजय नव पद जिनालय कहते हैं । 222 - प्राचीनता * जनजन में प्रचलित नवपद आराधक राजा श्रीपालजी का इस नगरी से मुख्य सम्बन्ध रहा है । श्रीपालजी ने मदन मंजरी के साथ यहीं पर शादी की थी । यह स्थान प्रागेतिहासिक होने के कारण किसी समय यहाँ पर अनेकों मन्दिर रहे होंगे, ऐसा माना जाता है। इस मन्दिर की प्रतिष्ठा विक्रमी संवत् 2005 के माघ शुक्ला 5 को हुई थी । विशिष्टता * कौशाम्बी नगर के धनिष्ट श्री धवलसेठ द्वारा श्रीपालजी को समुद्र में गिराये जाने के बाद मगरमच्छ ने उन्हें यहीं पर दरिया किनारे छोड़ा था । श्रीपालजी नवपद के कट्टर आराधक थे । नवपद जी के प्रभाव से यहाँ के तत्कालीन राजा वसुपाल ने अपने राज्य के विद्वान ज्योतिषाचार्यों की सलाह से श्रीपालजी को सम्मान पूर्वक राज दरबार में बुलाकर अपनी प्रिय पुत्री मदनमंजरी का विवाह उनके साथ करके अपने को भाग्यवान समझने लगा । श्रीपालजी चंपापुरी नरेश श्री सिंहस्थ के पुत्र ये व सिर्फ पाँच ही वर्ष की अल्प आयु में पिता के देहान्त के पश्चात् उनके चाचे श्री अजितसेन को आये कुविचारों के कारण दुर्भाग्यवश उनकों अपनी माता राणी कमलप्रभा के साथ शहर छोड़ना पड़ा था । मनुष्य अपने कर्म से ही सब कुछ बनता है उसको प्रमाणित करने वाली दृढ़ निश्चयी, जैन धर्म में श्रद्धालु, नवपद की कट्टर आराधिका, उज्जैन के राजा श्री प्रतिपाल की पुत्री श्री मैना सुन्दरी का विवाह कुष्ट रोग से पीड़ित श्रीपाल के साथ हुआ था । परन्तु नवपद की आराधना के प्रभाव से राजा श्रीपाल का कुष्ट रोग निवाराण होकर अत्यन्त रिद्धि-सिद्धि को प्राप्त करके वीरता के साथ जगह-जगह ख्याती पाते हुअ नव राणियों के साथ चम्पापुरी जाकर अपने साहस व बल से पुनः राज्य प्राप्त किया था इन्हीं राजा श्रीपाल व मैनासुन्दरी का रास आज भी जनकल्याण हेतु जन जन में गाया जाता है । प्रतिवर्ष माघ शुक्ला 5 को ध्वजा चढ़ाई जाती है। अन्य मन्दिर * इसके सामने ही श्री आ भगवान का मन्दिर है 1943 में हुई थी । जिसकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत् कला और सौन्दर्य * मन्दिर में श्रीपाल राजा, श्री विक्रमादित्य राजा तथा सम्प्रति राजा इत्यादि के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं के बने भव्य एवं सुन्दर रंग-बिरंगें पट बने हुए हैं, जो बहुत ही आकर्षक है । मार्ग दर्शन यह तीर्थ मुम्बई-पुणे मार्ग पर, मुम्बई से 24 कि. मी. की दूरी पर स्थित है । रेल्वे स्टेशन, तीर्थ स्थल से 111⁄2 कि. मी. की दूरी पर

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