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श्री पालुकुन्नू पार्श्वनाथ तीर्थ
तीर्थाधिराज * श्री पालुकुन्नू पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, (दि. मन्दिर) । तीर्थ स्थल * छोटे से पालुकुन्नू गांव में ।
प्राचीनता * यह स्थल वायनाडु जिले का प्राचीनतम तीर्थ है जो कम से कम एक हजार वर्ष पूर्व का अवश्य है, परन्तु सही प्राचीनता का पता लगाना कठिन है।
कहा जाता है कि उत्तरी भारत के बिहार प्रांत में जब बारह वर्ष का भीषण अकाल पड़ा तब आर्य भद्र बाहुस्वामीजी ने अपने 12000 शिष्य समुदाय व राजा चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में चन्द्रगिरि पर्वत पर निवास किया था । उस समय दक्षिण के सभी प्रांतों में धर्म प्रचारार्थ मुनिगणों का विचरण हुवा । उन मुनिगणों ने समस्त दक्षिण भारत में जगह-जगह ध्यान-साधना हेतु गुफाओं का निर्माण करवाया, जगह-जगह मन्दिरों का निर्माण हुवा, उत्थान हेतु संघों की स्थापना हुई । स्थानीय भाषाओं में अनेकों ग्रंथों की रचनाएँ हुई जो आज भी जगह-जगह
जिनालय का भीतरी दृश्य-पालुकुन्नू उपलब्ध है । उनमें यह केरल प्रांत भी शामिल था, संभवतः उस समय यह स्थल मलाबार या मलयागिरि के नाम प्रचलित होगा ।
जाहोजलाली रही होगी व अनेकों जैन मन्दिरों का
निर्माण हुवा होगा । यह भी कहा जाता है कि आर्य भद्रबाहुस्वामी का यहाँ आगमन हुवा उसके पूर्व भी यहाँ जैन धर्म की
काल के प्रभाव से प्रायः सभी स्थानों पर मन्दिरों व अत्यन्त जाहोजलाली थी व अनेकों जैन धर्मावलम्बि
प्रतिमाओं को क्षति पहुँची या परिवर्तित हुए । उसी रहते थे जिन्हें श्रमणर नाम से सम्बोधित किया जाता
भांति यहाँ भी हुवा होगा ऐसा महसूस हो रहा है । था । संभवतः इसी के कारण आर्य भद्रबाहुस्वामी अपने
आज इस जिले में आठ दिगम्बर जैन मन्दिर है, शिष्य समुदाय के साथ दक्षिण में पधारे हों । यह
जिनमें चार मन्दिर एक हजार वर्ष पूर्व के हैं लेकिन अनुसंधान का विषय है ।
प्राचीन प्रतिमा के साथ प्राचीन मन्दिर यही है । अन्य इस केरल प्रांत के हर जिले में जैन मन्दिरों के रहने
मन्दिरों में क्षति पहुँचने के कारण, कहीं-कहीं मन्दिरों
का स्थान परिवर्तित हुवा तो कहीं प्रतिमा बदली का प्रमाण मिलता है । यहाँ के एक महाशय ने बताया
गई है। था कि जब वे "बुधिजम इन केरल" पर थीसिस लिख रहे थे तब जगह-जगह से लोग आकर कहते थे
आज इस जिले में लगभग 1500 जैन बंधुगण कि बुद्ध भगवान की प्रतिमा भूगर्भ से प्राप्त हुई है।
रहते हैं । यहाँ के ज्यादातर मन्दिरों की व्यवस्था यहाँ परन्तु जब वे खुद जाकर देखते थे तो पता लगता था
के स्थानीय गवडर जैन बंधुगण करते आ रहे हैं जैसे कि प्रतिमा जैन तीर्थंकर भगवान की है। यह घटना
कर्नाटक में सेट्टी व तमिलनाडु में नैनार बंधुगण जैन जगह-जगह प्रायः हर जिले में घटती थी । इससे सिद्ध
____ धर्मावलम्बी हैं व व्यवस्था करते आ रहे हैं । यहाँ के होता है कि पूर्वकाल में यहाँ जैन धर्म की अच्छी
प्राचीन मन्दिर ज्यादातर दिगम्बर आम्नाय के हैं, परन्तु यहाँ के निकटतम कलीकट जिले के मुख्य शहर
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