Book Title: Tirth Darshan Part 1
Author(s): Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publisher: Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai

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Page 192
________________ श्री जिनकांची तीर्थ तीर्थाधिराज * श्री महावीर भगवान, अर्द्ध पद्मासनस्थ, लगभग 5 फुट (दि. मन्दिर ) । तीर्थ स्थल * कांचीपुरम शहर से लगभग 3.5 कि. मी. दूर तिरुप्पतिकुण्ड्रम गाँव में विशाल परकोटे के बीच । प्राचीनता * इस मन्दिर का निर्माण पल्लव नरेशों के काल में ई. सातवीं सदी में हुआ माना जाता है। ई. सन् 640 में चीनी प्रवासी हुएनसांग ने अपनी प्रवास - स्मृति में उस समय यहाँ लगभग 80 जैन मन्दिरों व विपुल मात्रा में जैनियों की बस्ती होने का उल्लेख किया है । नरेश महेन्द्र वर्मा द्वारा सातवीं सदी में इस मन्दिर के निर्माण के लिए अधिक योगदान देने का उल्लेख है । इसके पश्चात् के नरेशों ने मन्दिर में विभिन्न भागों को बनवाया था । राजा कुलोत्तुंग चोल प्रथम ने ई. 1116 में इस मन्दिर के लिए कई एकड़ भूमि भेंट देकर इसका नाम पल्लिचन्दम रखा था । वर्तमान नाम भी उसी समय का माना जाता हैं । 188 इस मन्दिर के निकट ही श्री चन्द्रप्रभ भगवान का इससे भी प्राचीन मन्दिर अभी भी स्थित है, जो यहाँ के इसके पूर्व के मन्दिरों की याद दिलाता है । लगभग 600 वर्ष पूर्व विजयनगर साम्राज्य के नायक हरिहर के अमात्य इरुगप्प दण्डनायक द्वारा यहाँ बीस स्थंभ वाला महामण्डप बनवाये जाने का उल्लेख है । चीनी यात्री हुएनसांग द्वारा उल्लिखित मन्दिरों का वर्तमान में पता नहीं है । लेकिन आज यही एक मन्दिर स्थित है, जहाँ जैन विधि, पूर्वक पूजा होती है। बाजू के मन्दिर की प्रतिमा खंडित होने के कारण पूजा नहीं होती । यहाँ का कार्यभार पुरातत्व विभाग की देखरेख में है । विशिष्टता पल्लव शासनकाल में यहाँ जैनियों की संख्या विपुल मात्रा में होने व अनेकों जिन मन्दिरों से यह नगर सुशोभित होने के उल्लेख मिलते है । पल्लव नरेशों के गुरु श्री वामन आचार्य की यह तपोभूमि है। मन्दिर के परिक्रमा में पीछे के भाग में प्राचीन कोरा नाम का वृक्ष है। कहा जाता है कि वामन आचार्य ने यहाँ तपस्या की थी । (मल्लिसेन आचार्य का अपरनाम वामन आचार्य बताया जाता है) 132222 श्री महावीर जिनालय जिनकांची

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