Book Title: Tiloypannatti Part 1 Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha View full book textPage 4
________________ पुरोवाक श्री यतिवृषभाचार्य द्वारा विरचित 'तिलोय पण्णत्ती' ग्रंथ जैन वाङ्मय के अन्तर्गत करणानुयोग का प्राचीन ग्रन्थ है। इसमें लोक प्ररूपणा के साथ अनेक प्रमेयों का दिग्दर्शन उपलब्ध है । राजवार्तिक, हरिवंश पुराण, त्रिलोकसार, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति तथा सिद्धान्तसार दीपक प्रादि ग्रंथों का यह मूल स्रोत कहा जाता है । इसका पहली बार प्रकाशन डा० हीरालालजी, डा० ए० एन. उपाध्ये के संपातमा में पं० बालबदली झाली पाहिन्नी अनुवाद के साथ जीवराज ग्रन्थमाला सोलापुर से हुआ था, जो अब अप्राप्य है। इस संस्करण में गणित सम्बन्धी कुछ संदर्भ अस्पष्ट रह गये थे जिन्हें इस संस्करण में टीकाकी श्री १०५ धार्यिका विशुद्धमतीजी ने अनेक प्राचीन प्रतियों के आधार पर स्पष्ट किया है। त्रिलोकसार तथा सिद्धान्तसार दीपक को टीका करने के पश्चात् आपने 'तिलोय पण्णत्ती' को प्राचीन प्रतियों के आधार से संशोधित कर हिन्दी अनुवाद से युक्त किया है तथा प्रसङ्गानुसार आगत अनेक आकृतियों, संदृष्टियों एवं विशेषार्थों से अलंकृत किया है, यह प्रसन्नता की बात है। संपूर्ण ग्रन्थ नौ अधिकारों में विभाजित है जिनमें से प्रारम्भिक तीन अधिकारों का यह प्रथम भाग प्रकाशित किया जा रहा है। चतुर्थ अधिकार को अनुवाद के साथ द्वितीय भाग और शेष अधिकारों को अनुवाद के साथ तृतीय भाग के रूप में प्रकाशित करने की योजना है । पूज्य माताजी श्री विशुद्धमतीजी अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग वाली आर्यिका हैं। इनका समग्र समय स्वाध्याय और तत्त्व चिन्तन में व्यतीत होता है । तपश्चरण के प्रभाव से इनके क्षयोपशम में आश्चर्यकारक वृद्धि हुई है । इसो क्षयोपशम के कारण श्राप इन गहन ग्रंथों को टीका करने में सक्षम हो सकी हैं। श्री चेतनप्रकाशजी पाटनी ने ग्रन्थ का संपादन बहुत परिश्रम से किया है तथा प्रस्तावना में सम्बद्ध समस्त विषयों की पर्याप्त जानकारी दी है । गणित के प्रसिद्ध विद्वान् प्रो. लक्ष्मीचन्द्रजी ने 'तिलोय पण्णत्ती और उसका गणित' शीर्षक अपने लेख में गणित की विविध धाराओं को स्पष्ट किया है । माताजी ने अपने 'आद्यमिताक्षर' में ग्रन्थ के उपोद्घात का पूर्ण विवरण दिया है। भारतवर्षीय दि० जन महासभा के उत्माही-कर्मठ अध्यक्ष श्री निर्मल कुमारजी सेठी ने महासभा के प्रकाशन विभाग द्वारा इस महान् ग्रंथ का प्रकाशन कर प्रकाशन विभाग को गौरवान्वित किया है।Page Navigation
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