________________
१२
देवसुन्दरसूरि के शिष्यों में ज्ञानसागरसूरि, कुलमण्डनसूरि, गुणरत्न, साधुरत्न, सोमसुन्दरसूरि, साधुराजगणि, क्षेमंकरसूरि आदि का नाम मिलता है।
१
ज्ञानसागरसूरि द्वारा रचित कई कृतियाँ मिलती हैं, जो इस प्रकार हैं : १. उत्तराध्ययनअवचूरि वि०सं०१४४१ २. आवश्यकसूत्र पर अवचूरि वि० सं० १४४० ३. ओघनियुक्ति पर अवचूरि ५. धनौधनवखंडपार्श्वनाथस्तवन
४. मुनिसुव्रतस्तवन
६. शास्वतचैत्यवन्दन आदि इस प्रकार हैं :
कुलमंडनसूरि द्वारा राचत कृतियाँ
१. विचारामृतसंग्रह वि०सं० १४४३
२. प्रवचनपाक्षिक रूप अधिकार वाला सिद्धान्तालापकोद्धार
३. प्रज्ञापना अवचूरि
५. कल्पसूत्र अवचूरि
७. अष्टादशचक्रबन्धस्तवन
९. काकबंधचौपाई आदि
देवसुन्दरसूरि के तीसरे शिष्य गुणरत्न भी अपने समय के प्रसिद्ध रचनाकार थे। उनके द्वारा रचित कृतियाँ २२अ निम्नानुसार हैं :
१.
२.
३.
४.
५.
४. प्रतिक्रमणसूत्र अवचूरि
६. कायस्थितिस्तोत्र पर अवचूरि ८. हारबंधस्तवन
कल्पान्तर्वाच्य वि०सं० १४५७
सप्ततिका पर देवेन्द्रसूरि की टीका के आधार पर अवचूर्णि वि०सं० १४५९ देवेन्द्रसूरिकृत कर्मग्रन्थों पर अवचूरि
प्रकीर्णकों पर अवचूरि
सोमतिलकसूरिविरचित क्षेत्रसमास पर अवचूरि
नवतत्त्व अवचूरि अंचलमतनिराकरण
६.
७.
८.
ओघनियुक्तिउद्धार क्रियारलसमुच्चय
९.
१०. षट्दर्शनसमुच्चय पर तत्त्वरहस्यदीपिका नामक टीका कल्याणमंदिरस्तोत्रटीका
११.
१२. सप्ततिका अवचूरि वि०सं० १४५९ के लगभग
१३. आतुरप्रत्याख्यान अवचूरि
१४. चतुःशरणअवचूरि
१५.
संस्तारक अवचूरि
१६. भक्तपरिज्ञा अवचूरि
१७. गुरुपर्वक्रमवर्णनम् वि०सं० १४६६
वि०सं० १४६९ के दो प्रतिमालेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में भी इनका नाम
मिलता है। २३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org