Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 5
________________ 14] है। गणधरों में विशिष्ट प्रतिभा होती है। उनकी बुद्धि अत्यन्त तीक्ष्ण होती है। अतएव तीर्थंकर प्रभु की वाणी रूप पुष्प वृष्टि को पूर्ण रूप से ग्रहण कर रंग बिरंगी पुष्प माला की तरह प्रवचन को सूत्र माला में ग्रंथित करते हैं। गणधर भगवन् द्वारा व्यवस्थित किया गया सूत्र रूप ज्ञान सरलता पूर्वक ग्रहण किया जा सकता है। समवायांग सूत्र में जहाँ प्रभु के भाषा अतिशय का वर्णन है, वहाँ बतलाया गया है कि तीर्थंकर प्रभु अर्धमागधी भाषा में धर्म का उपदेश फरमाते हैं। किन्तु उनके भाषा अतिशय के कारण उपस्थित सभी जीवों को अपनी-अपनी भाषा में परिणत उन्हें सुनाई देती है। यानी आर्य अनार्य पुरुष ही नहीं प्रत्युत द्विपद चतुष्पद, मृग पशु-पक्षी आदि सभी जीव भी उस कल्याणकारी भाषा को अपने क्षयोपशम के अनुसार ग्रहण करते हैं और अनेक जीव बोध को प्राप्त करते हैं। __ वर्तमान में हमारे स्थानकवासी समाज में बत्तीस आगम मान्य हैं। उनका समय-समय पर विभिन्न वर्गीकरण किया गया है। सर्वप्रथम उन्हें अंग प्रविष्ट और अंगबाह्य के रूप में प्रतिष्टि किया गया। अंग प्रविष्ट श्रुत में उन आगम साहित्य को लिया गया है जिनका गून्थन स्वयं गणधरों द्वारा हुआ है। यानी गणधरों द्वारा जिज्ञासा प्रस्तुत करने पर तीर्थंकर प्रभु द्वारा समाधान फरमाया गया हो। अंग बाह्यश्रुत वह है जो स्थविर कृत अथवा गणधरों के द्वारा जिज्ञासा प्रस्तुत किये बिना ही तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित हो। समवायांग और अनुयोग सूत्र में आगम साहित्य का केवल द्वादशांगी के रूप में निरूपण हुआ है। तीसरा वर्गीकरण विषय के हिसाब से चरणानुयोग, द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग और धर्मकथानुयोग के रूप में हुआ है। इसके पश्चात्वर्ती साहित्य में जो सबसे अर्वाचीन है, उसमें ग्यारह अंग, बारह उपांग, चार मूल, चार छेद सूत्र और बत्तीसवां आवश्यक सूत्र के रूप में वर्तमान बत्तीस आगमों का विभाजन किया गया है। ____ अंग सूत्रों के क्रम में सर्व प्रथम आचारांग सूत्र है। जिसमें अपने नाम के अनुरूप श्रमण जीवन आचार पालन की प्रधानता का निरूपण किया है। इसी क्रम में दूसरा स्थान प्रस्तुत सूत्रकृतांग सूत्र का है। इसमें आचार के साथ विचार (दर्शन) की मुख्यता है। जैन दर्शन में आचार और विचार के सुन्दर समन्वय से | साधक साधना मार्ग में आगे बढ़ता है। इस सूत्र (आगम) के कुल सोलह अध्ययन हैं। उनका संक्षिप्त परिचय यहाँ दिया जा रहा है। विस्तृत जानकारी के लिए पाठक बन्धुओं को सम्पूर्ण सूत्र का पारायण करना चाहिए। - प्रथम अध्ययन 'समय' - इस अध्ययन के चार उद्देशक हैं। प्रथम उद्देशक में मनुष्य को बोध प्राप्त करने की प्रेरणा देने के पश्चात् बन्धन के स्वरूप को जानकर उन्हें तोड़ने के उपायों का बहुत ही सुन्दर निरूपण किया गया। द्वितीय उद्देशक में अन्य विभिन्न प्रचलितमतों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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