Book Title: Sutrakritanga Churni
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Page 6
________________ जीवाइंसत्तासमुच्छेदोलापहीण पुबसंजोगासवंगपुरा)आयरियमगं असंपला इसिलेणी हलाएणीपाराएलराकामभोगसि (कामभौगहिदि सार पुर पुस कामभोगेसुवि० ख 1 वृ० दी०॥)विसा इतिपढने पुरिसज्जाती सजीवलास शरए ति ( १२ए बंद खरपुश्पुर) आहित // 9..." - 644. 1. यह खलु पाईण वा एकाइह मणुस्सलपोपण्णवगं पुडुच्च सति वियन्तै एतिया सने अभिगिहीतमिच्छादिहिणी भवति, उपलक्षणत्वादनभिगृहीला अपि केले, आर्या अपि खेत्तादिआयरिया,तब्बइरिसा अणारिया ।इकिला उध्यागी आणिच्चागोआ,जच्चातिएहिंमतवा लेहि अंता उच्चागीता, लैहि विणा आगो। नाशवः कायवन्तः वामन-कुबजा स्ववती / एकेका पुणो सुवर्णा वेगे भवदाला झ्यामावा षण्ण मला,कालापिंगळा वा दुबण्णा अथवा कालाअपि स्निग्धच्छायावन्सस्तेजस्विनश्च सुवर्णाः,अपदाता अपि फरुसच्छविणो दुबा| उक्तं हि चक्षुः स्नेहन सौभायंदन्त स्नेहन भोजनम्। बकरने हे परम सौख्य नखस्ने हे धनादिकम् // 1 // सुवा जामगे सुरुवा भेगा। इछिका सुरूवावुसता अही नपंचिंदिया नातिधूरा नातिकृशाश्व सुरूपा, इतरे दुल पार येवा चक्षुधोरीचन्तै ते सुरवा, इतरे दुरूवा। सैसिं राया भवति महतगह महाहिमले सको वेव मलयो वृच्छति।दरी सुरू।हिंदी सको तत्थ हिमर्षत-मन्या

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