Book Title: Sutrakritanga Churni Author(s): Publisher: View full book textPage 7
________________ पच्चक्खी दिवती, मंदर-माहंदा परोक्वीसारं स्थैर्य पर्वतानां औषधि-रत्नसम्पच्च,महेन्द्रस्यापि गाम्भीर्येश्चर्य-विभवा कुल प्रसल- - स्वादमायदिन करोति अच्छतविरुद्ध पूर्वकमपितस्थ असडीविलक्षणसम्पनी चिरजीवी निरु पहृतं च तस्याराज्यं भवति।मात-पित सुजातं जहिच्छिले मणौरहे पूरयति दयालू दाणशीलो वाट्यप्पत्ती।सीमा मर्यादाकारः। क्षेमं परचक्रातिनिरोधी।सैऊपाली, यया सेतुं न्यतिवर्तन्ते आप एवं तत्कृतांमर्यादा नातिवर्तन्त भृत्याः केतुनाम ध्वज,केतुभूतः स्वकुलस्या आसीविसौ जहा दृष्टमात्रमेवमाश्यति एवं अवकारिणो रिणी अ आशमाश्यतिविग्यौ अमीस-दरगाहीय।पौंडरीय प्रधान गंधहस्थी जहा सैहा (सेस) हत्थी गंधण जस्सति एवं तस्स सत्ताबलं सारीरंच सुरंगच। पच्चमिता सामंता।केटका सामनदाई आकरा | डिवं सचल रज्जखोभादि / डमरपरचक्र परबले। - परिसतीति परिमा। ... उमा भीगा राइण्ण रखतिभा संगहो भवै चउहा। - - ------ आ रविव गुरुवयंसा सेसा जखतिआते उ // 1 // आव निगा रुश - भट्टा जोहान लाव भत्त्वमताप्तवयस्त्वात् कुन्ति ते भट्टपुत्राः, एवं सर्वत्र लेखकाः धर्मपाठका रक्षकाद्या / प्रशस्तानि कुर्वन्तीति - प्रशस्तारो लिच्छवि कुन लिप्सा जीविणी वा वणिजादि। माहणा बंभणा | जैसिं अण्ण वणियाबवहरंति ले इड्डिमतवणिआ इति इमा माह -हि-"अनुभवणपुत्राया." वि .स . .. इत्यादि। शाल ---- --- -- -- -----...-- - - ------- ---- -- - - - - तैसिंच of पातिए सड्डी भवन,धर्म शुक्षुर्वा धर्मजिवक्षुर्वा काम अबतार्थे, अतधृतमेव हि भायणाय नीयतेPage Navigation
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