Book Title: Sutrakritanga Churni
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________________ T- ------- संच पदुद्देसैण पदामामुद्देशः पदैर्वा पञ्चभिरुद्देशात्वाच्यस्यसमवाटाणं समवाया,स्यात् कथं समवायः प्रधानत्वात् / लो) मायका० का० 22] उर्फ हि-"प्रकृलेर्महान महतोऽ हड्डग प्रतिलोम महारः प्रधानमैव समवैति अनिर्मिताः मकेमविदश्वरेणान्येन वा, -अभेन्ट्रधन्वादिवत स्वयं प्रादुर्भूताः अमिर्मियाम मिर्मियाः म निर्मितव्यम येषाम सत् कार्य सेवामभूत एव काप्ठादग्निनिर्मीयते मपिण्डाच्च घटः पट इत्यादि,भैर्व साड्डयामा मारणे कार्यसनावात्महि किञ्चिानामतव्यमिति अकडा णो कहा, यथाऽन्येपामकृतकमा का एवमकडायथा च घट: कृमि: एवं णो अकलिमा।। अकृत्रिमत्यादेवच अणादी अनिधिणा (जामताभ मो० वा०1०TA सत्ता भ७ मु० // समू-सा म भवंतिम सती अवध्या मान्या न तेर्धा कश्चित् स्वामी प्रवर्तत इत्यतः अपुरोहिताः पुरुषार्थ सुस्वतःप्रवृतिरेषा आहहि बसविवृद्धिनिमित्त क्षीरस्य यथा" [साइयका का०५] -(वत्स प्रवृद्धिनिमित्त पुणवत्सविवृद्धिनिर्वृतं मोठवा॥) अथवा ----- वेषां कधिदेकं इन्द्रियाणामिव चक्षुः प्रधामन स्वविषयबळवन्ति हि भूतानि / सकलेला नाम सासत सिस्वकातभावः स्वकतंत। - आयच्छ? डा) पुणेगे उक्तानि भूतानि भूतकारणानि चाव्यक्त-महदहङ्कार-तन्मात्राणिस्यात् क्रिीया प्रवृतिरिति,तबुच्यते, पुरुषार्थःस एवैधां पत्त यदर्थ नातिवर्तते, असावपि सन्नेव, सत्त्वेऽपि प्रधानवत् शाश्वतःसतथ्य नास्तिविनाशःपरमाणुवत् असतः सम्भवी नास्ति खरविषाणवत् / आहहि असदकरणादु पादान;"(सांडय का का०९)। एतावताव जीवकाएति,किमिति,म कशिदुत्पते वादिनस्यलिवा,
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