Book Title: Sutrakritanga Churni
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Page 14
________________ पचमहाभूइएाइह रखनु ,वालु इति विशेषण। किं विशिमष्टि, साडूय सिद्धान्त:-सोहणी कज्जइ किरिआ इवा भकिरिआ व वा, किया कर्म परिस्पन्द इत्यमर्थान्तरम् / सद्विपर्ययः अकिटा, अनारम्भः अवीर्य अपरिस्पन्द इत्यमर्थान्तरम् / सुदु कडं सुकउं. दुहु कडं दुछडं / सुझउमेष कलाणं पापमितरं शोभनं साधु, इतरमसोमण / ईप्सिता मिष्ठान सिद्धिः, विपर्ययः असिद्धिः निर्वाण वा सिद्धिः, असिद्धिः संसारः।। संसारिण जिरए तिवा, अणिरयःनिर्यग्योन-मनुष्याऽमराः। स्यात्-कथं महाभूतान्यचेतनानि किया कमकुर्वते १,उच्यते, सत्त्व-रज-स्तमौत स्तमीभिः) प्रधानगुणैरधिचितानि कर्म कुर्वते / उतं च | सत्त्वं लघु प्रकाशकमिष्टमुपरमकं चलंच रजः। गुरुवरणकमेत AR:प्रदीपवच्चार्थलो वृत्तिः // 1] सिांख्यकाका. 13] इत्यादि। "स्लमां साम्यावस्था प्रकृति प्रकृतिः प्रधानमव्यक्तमित्यर्थान्तरम् लित्र मोबाहल्या क्रिया भवलि सस्त गर्वावरणक कृत्वा आकृयापरवालासस्वबरल्यात मुबारजस्तमोबाहल्यात दक्कडं / एवमन्यान्यपि कल्याणा-सा-सिद्धि-नरका दीनि अपास्तानि सत्वबाहुल्यात् / रजस्तमी म यदि स्याद् आप येतसी तृणस्य कुब्जीकोऽपि पुरुषोऽमीश्वरः, गुणकृतं तु फल भुते / उक्तं हि तस्मात् सत्संयोगादा वेतनाबदिव निमसिनावदवनिमत्वकृतिगुणकर्तृन्सप्र०)चेतना चश्व भाति लिङ्क ल्वाप्रकृतिपूर्ण 'कतृत्वे च भवत्युदासीनः मु) गुणक तत्वे च तथा अषि भवत्यु दासनः॥॥ सायका० मा० 2] .

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