Book Title: Sutrakritanga Churni
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________________ संसारी यानीव इतिभखामा अहमट्टारएहि भणिती सती अन्योऽमूसी: इति उपप्रदर्शनार्थीहब्बं गिहवासो, जहा-“हत्विं पिताम्वार ------ - 7म विना पारं। प्रव्रज्या फलं वा पारलौकिक वा मागी मोक्षी वा अंतरा कामभोगासि पंकस्मि विसणि गादिदुर्गति संयसि वा / पदमै पुरिसज्जाले // 9 // ------- - --645.1 अधिवरे दोच्चे परिसजाए पंचमह भूलि ले ति आहिज्जइ-इह रखनु पाईणं वाक स्लैगतिया मणुस्सा भवति अणुपुष्वणं को ज उवषण्णा जहा- आरिया वैगे अणारिया वेग एवं भाव दुदारवा वैगे। तैसिं च मह एो राया भवति महया एवं चैव शिरवसेस जाव सेवावतिपुत्ता / तेसिं च णं एगतिए सड्डी भवतिकामं तं समा य माहणा य पहारसुगमणाए -- - तत्थडणयरेण धम्मेण पसत्तारो वयं इमै धम्मैण पावइस्सामी-से एवमायाणहभयंतारो जहा मेसे (मेएस - व संशाधने सुअवाले सुपण्णसे भवतिाह खलुपंच महब्भूता,हिंगो कज्जइ किरिया ति वा अकिरिया ति वा सुकडे तिवा इकडे ति वा कल्लाण लिवा पावए सिवा साडू ति बा असाह लि वा सिद्धी लि वा असिद्धीति वा शिरए ति वा अनिरए ति वा 'अवि यं तसो लगमायमति. - - - - - मंच (वापिहुई. सं 2 पुष 12 1) पदुद्देसैणं पुढो भूत समवात आणेजा। जहा-पुढवी शो महत्भूते आ35 (67 बीए मg Yu) 1 धाव मे 2 // 2 °सज्जाले सं१व २॥३पंचभूलित रख 2 / 4 हस्त चिन्हार्गलसूत्र पाठस्थाने खं 241 पुर प्रसिछुजाव इत्ये लावदेव सूत्रपाठो
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