Book Title: Sutrakritanga Churni
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________________ अर्जयन्ति रक्षायन्ति "भुजपालना-ऽस्यववहारथी: "इलि भोजनार्थ भोज नायव एवं एरी पाराणि प्रागल्भत पृष्टाः, अण्ण जीव अण्णे हारी, जाति-स्मरण-थापा भिलासादिएहि दिलुतहि एत्या विदितं अन्यत्वं दरिसिजमाणं असदहमा स्थापि धृतराः जिलज्जा मा धम्मं पण्णवयंति कथमितियथा नान्यःशरीरादात्मति। त सहमाणा तं पत्तिअमाणा साधु अक्रवाता भारख्याती त्या ख्याताः कामं कमु इच्छायाम्" इच्छामि देवाणुप्पिा! जं तुम अम्हाण तज्जीव लस्सरीरको पक्रवौ अक्वाली, बहरहा वयं परनोगभएण हिंसा दीणि सुहसाहाणि परिहरमाण टुकिवता आसी,संपति णिस्संकित प वलिस्सामो, बहरहा हि मन्नं मंस परिहरामी उबवास करमी रित्ययं चेव, अश्माच्च कारणात् वयं भाषता प्रत्युपकार कुर्मः आयुष्मन्। पूजया मकेण? असणेणवाकवत्थेण एक तत्थ [ए] पूजणाए आउटिंसु, एसेहिं चेव असणाईहिसयणा-Sऽसणवसहीहि वालिस्थ एो पिकामसु, जिका में णाम पज्जतं,त एवं सावपुर जेहिं समणमाहीहि गाहिला सेले पूरन्तिास्माद् बुद्धिः-यदि नास्ति परजोगी किं ते पव्वता१, उच्यते,लेसि लोगायतियाण पाम डोचैव जस्टिा, ते पुण अण्णेसि केसिं गामलिंगमाईण सच्चमलिकणिधाम सोतुं भणति लेसि अतिए पल्लतुं। समा भविस्सामी, अणारा जाव पावं कम्म जो करिक्सामो एवं सम्पधार्य तदन्तिके प्रवजिता लोकायत आदत्ता पतित मोतुं च पच्छा सितंचैव रुचित। अथवा लोकपक्तिनिमितं सुखमात्रपाषण्डमाभिव्य विचरिष्यामः, पुङ्गलमातिपुत्रवत् / किञ्च-चरणदिनिङ्गमा 'श्रयन्ति, लोकपतिनिमितं (पक्तिनिमित) च प्रच्छन्द्यन्त्यात्मानं पयामी, एन्वतुं समणा भविस्सामो अमारा जाव पावकम् जणो
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