Book Title: Sutrakritanga Churni Author(s): Publisher: View full book textPage 8
________________ प्रफुल्लसरी वा पत्तीवगादिजुत्ती वा वणसंडी"किमुबुच्छायां"ना, कामयमाणाहं प्राहिध्यामाससमयं परममाय इत्यैव समणापाडीमाठणा --- - हा पहारेंसु पलटोलि तथा तरेण नारदीयेन जयमलेन स्वप्रणीतन धर्मेण पण्णवरासीत एवं सम्प्रधा8 लदन्तिके गत्वा ऽह से आमन्त्रणे, अत्यर्थं जाण यद्वक्ष्यामः,भया बान्ति इति भयवातारः,तेतु राजानः उनाद्याश्च तस्माता महा मैसै घम्मे माएप प्रत्यक्षः सुहअक्खा तै सुपण्णत्त कसरी ? लौगायलधम्मी, तेषां आत्मा विद्यते न तु शरीर दर्थान्तरम् शरीरमेरेमातल्परिम म उड़ पादलला अधे के सागा तिरिय तया, एतावाने न जीवति (जी ति)। एस दाविजलि पाजतो प्रकारोकसि मास्न शारीरमा माजीव जीवइति सरीरे जीवति, अव्य) शारीरे जीवति, शरीरादनान्तरमैव जीवितम् तबिना जीवविनाशी,बात-पत्त-मणश्य शरीरं त्रिवियामसुत्रवर्द्धलेतीघामेकतराभावेशरीराभारतदभाव चाऽऽत्मामाव:एतावतं जीवितं यावच्छरीरमविकासमा आहाह एतावानेव परमात्मा, त्याविगतं शरीरम्"[ ] आदET पहिं णिज्जइ, आत्य यस्मिन् सुदो दहन्ति तादहणं स्मशा लम् परेहि चाहिं पुरिसैहिं जिला अगणिज्झामिए सिरीरे] बौती पारेवओ आसनं ददातीति आसंदी आसंदोधारा चत्तरि गाम पर पन्तिमंचा पि पाणा आणहिीयाद पुनरामा विद्यारी तैन बारीरे छिद्यमान यमाने वानिरसन्नुपलभ्येत, वृक्षविनाश इकुनिवत्, इत्येवं शनी गईम्सतः शरीरदाहेऽपिसति छदे वा नदोषः पारामिकोऽस्ति अविद्यमानी जीवा अनुवा शरीरादूईमविद्यमानी जैसिं तैसि तु सुभक्र नं।Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 284