Book Title: Sutrakritanga Churni Author(s): Publisher: View full book textPage 5
________________ जीते, मस्थि परे लोएलेणी एवं विष्पवैदेति(विष्यवैदेति स्वं ५-रखर पूद पु२ वृन्दीगा) मा सं०महा०-किरिया इवा अकिरियाइ वा मुक्कडे इता दुक्कडे इ वा कलाणए 3 वा पावए इ वा माहुइ षा असाहु इवा सिद्धी इ वा असिद्धी इ.वा निरए इ.वा अनिरए इवा / एधे से विरूवरूवेहि काम समारंभेहि विस्वरवाई कामभोगाई समारभति ( भिति र 8 रखे 251 // भोयणाए / एवं एगे (गे) वृ०॥ पाली (भिया जिक्खम्म रख 2 वृ०-दी०॥ पु-१ पुर)णिक मामगंधम्म पाणवैति, सं सहमाणात पत्तियमाणात रोएमाला साह सुयात सामगै ति वा माहने ति वा, काम खलु आउसो तुम पूथ्यामी,जहा-असणवा पाणण वा खातिमेण वा सातिमण वा वस्थेण वा पडिगहेण या केबलेण वा पाय पुंछोणा वा, तत्टोगे पूयाणाएसमा उहिंसु, लत्यगे पूयणाए कामईसु (काईसु खं 2 5.3 व दी०॥ - पला मेव ले जायं भवति-सम भवितामा अणारा अकिंचा अपत्ता अपुला खं१ ख 2 पूवृत्तिकृता नास्तीदं पदै व्याख्याता) अपस परक्तभोड्णोभिक्खुणो पाबं काम करिस्सामी,समाएते अप्पणा अप्परविरया भवंति, सयमा इयंति अन्ने हिम आदियाति अन्नं पिया ऽऽइयंत समगुजाति, एवामेव ते इस्थिकामभोगेहि मुच्छिया सिद्धां गढिला अझविवण्णा मुद्धा राग-दीसत्ता सट्टा, ते व 2 पु.१पुरते अप्पन अप्युसमुच्छेदेतिले तो परे(परं खं व 2.30 वी० // ) समुच्छेदेति ते जो अण्णापागाई भूताPage Navigation
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