Book Title: Sutrakritanga Churni
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Page 4
________________ / अयं को सीए, पवामेव णस्थि केई अविना क्षाणां उवदशैति-अयमाञ्सीआया अयंसरीरे से उहाणामएकेइ पुरिसे मुजाओ इसियं अभिलिताण उवद-सज्जा-अरामाउसी / मुंजे अयं इसी या एकामेव मथि केइ पुस्सेि उवदंसे तारो-अयमाउसी! आता इदं सरीर से अहामएकैति पुरिस मंसाओ अढि अभिनिलहिताणं उवद-सेन्जा-अयमाउमी' ।मसे अयं भट्टी, एवामैव नस्थि के पुरिसे उबदसैतारी-अयमाउसी! आयाइवं सरीरं से जहाणामए केइ पुरिस करतलाओ आमलकं अभिनित्यट्टिताणं उवदं सैज्जा-अयमा उसी परतलेअयं आमलए, एवामिव णस्थि केइ पुरिसे अदंसेत्तारी-अयमाउसी ! आटा इदसरीर से अहाणामए केइ पुरिसे दहिओ णषणीय अभिनिवट्टित्ताणं उवदसेज्जा -अयमा सोनवानी अयं उदमी, (उद-सी तक मित्यष्टः / दनी वनीले पृथक्त तकमेवा वज्ञिस्यते इति भावः।) एवा मेव स्थि केइ पुरिसाव सरीरं से जहाणामए केइ पुरिसे हिलहिली तेल अभिनिता उवदसैज्जा-अयमाउसो तेल्ले अयं पिनाए, एवामेव जाव-सरीरं / से जहाजामए केइ पुरिस इक्खू तो खीसरसं अभिनियहिताणं उन दंसेजा-अयमाउसो! खोत रस अयं चौए, एवामेव आवसरी से जहाणा मए के पुरिसे अरणही अग्गिं अभिनितदेताणं उवदंसेज्जा-अयमाउसो! अरणी अयं अग्गी, एवामेव जाव सरीरं। एवं असती अविजमाणे (अस तो अविका खं१ ख 2 पु पु२ वृ० दी० जेसिं तं सुयक्रवायं भवति,त. - अन्नी जीवी अन्नं सरी, लम्हा सं लिच्छ।।. से हंसा एह, रणर छणह इहह पयह आलुपहविलुपह सहसकारह विप्परामुह, एताव ताव (ता जीवे अस्थि परलाऐ(वं 2 कद

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