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था ग्रंथमां को घुफ सुधारवामां, लेखमां समजमां अशुद्धि रही होय तो ते संबंधी हुँ मिछामिकम दर निर्दोषतानो संगी थाई, अने इच्छंदु के-सदा सर्व जैनवीरो आवां रहस्य गर्मित पुस्तको प्रकट करवामांज तल्लीन रहे एवीज शासनदेवनी प्रेरणा था !
वीर संवत १४३७ ।
धनतेरश.
मददात्माना चरणांबुजनो मधुप
मंगलदास.
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