Book Title: Sukti Triveni Part 01 02 03
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 13
________________ १३ कल्याण प्रभृति गुण आदर्श संस्कृति के अग है । नैतिक, आध्यात्मिक तथा दिव्य जीवन का आदर्श ही संस्कृति का प्राण है । "ज्ञाने मोनं, क्षमा शक्ती, त्यागे श्लाघाविपर्यय इत्यादि आदर्श उच्च संस्कृति के द्योतक है । जिस प्रकार व्यष्टि मे है, उसी प्रकार समष्टि मे भी समझना चाहिए | " संकलनकर्ता ने वेद, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, प्रभृति ग्रन्थो से सकलन किया है । जैन धारा मे आचाराग सूत्र, सूत्रकृतागसूत्र, स्थानागसूत्र, भगवतीसूत्र, दशवेकालिकसूत्र, उत्तराध्ययनसूत्र और आचार्य भद्रबाहु के तथा आचार्य कुन्दकुन्द के वचनो से तथा भाप्य साहित्य, चूणि साहित्य से सूक्तियो का सचयन किया है । वौद्ध धारा मे सुत्तपिटक, दीर्घनिकाय, मज्झिमनिकाय, सयुक्तनिकाय, गुत्तरनिकाय, धम्मपद, उदान, इतिवृत्तक, सुत्तनिपात, थेरगाथा, जातक, विशुद्धिमग्गो प्रभृति ग्रन्यो से सग्रह किया है । देश को वर्तमान परिस्थिति मे इस प्रकार की समन्वयात्मक दृष्टि का व्यापक प्रसार जनता के भीतर होना आवश्यक है । इससे चित्त का सकोच दूर हो जाता है । मैं आशा करता हूँ कि श्रद्धेय ग्रन्थकार का महान् उद्देश्य पूर्ण होगा और देशव्यापी क्लेगप्रद भेदभाव के भीतर अभेददृष्टिस्वरूप अमृत का संचार होगा । इस प्रकार के ग्रंथो का जितना अधिक प्रचार हो, उतना ही देश का कल्याण होगा । - गोपीनाथ कविराज पद्मविभूषण, महामहोपाध्याय ( वाराणसी )

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