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सम्पादकीय
अर्थगौरवमडित एक सुभापित वचन कभी-कभी हजार ग्रन्यो से भी अधिक मूल्यवान सिद्ध होता है । हृदय की तीव्र अनुभूतियाँ, चिन्तन के वेग से उत्प्रेरित होकर, जब वाणी द्वारा व्यक्त होती हैं तो उनमे एक विचित्र तेज, तीक्ष्ण प्रभावशीलता एव किसी अटल सत्य की चमत्कारपूर्ण व्यजना छिपी रहती है । इसीलिए सुभाषित वचन को कभी-कभी मधु से आपूरित मधुमक्षिका के तीक्ष्ण दश से उपमित किया जाता है।
भारतीय तत्वचिन्तन एव जीवनदर्शन की अनन्त ज्ञानराशि छोटे-छोटे सुभापितो मे इस प्रकार सन्निहित है, जिस प्रकार कि छोटे-छोटे सुमनो मे उद्यान का सौरभमय वैभव छिपा रहता है। सौरभग्निग्ध-सुमन की भाति ज्ञानानुभूति-मडित सुभापित सपूर्ण वाड मय का प्रतिनिधिरुप होता है, इसलिए वह मन को मधुर, मोहक एव प्रिय लगता है । ___साहित्य एव काव्य की सहज सुरुचि रखने के कारण भारतीय वाह मय के अध्ययन-अध्यापन काल में जब कभी कोई सुभापितवचन, सूक्त आता है, तो वह अनायास ही मेरी स्मृतियो मे छा जाता है, वाणी पर स्थिर हो जाता है। प्रारम्भ मे मेरे समक्ष सूक्तिसकलन की कोई निश्चित परिकल्पना न होने पर भी हजारो सूक्त मेरे स्मृति-कोष मे समाविष्ट होते रहे और उनमे से वहुत से तो स्मृतिमच से उतरकर छोटी-छोटी पचियो व कापियो मे आज भी सुरक्षित रखे हुए हैं।
लगभग दो दशक पूर्व पं० वेचरदास जी दोशी के साथ 'महावीर वाणी' के सकलन एव सपादन मे सहकार्य किया था। तभी मेरे समक्ष एक व्यापक परिकल्पना थी कि भारतीय धर्मों की त्रिवेणी~जैन, बौद्ध एवं वैदिक धारा, जो वस्तुत एक अखण्ड अविच्छिन्न धारा के रूप में प्रवाहित है, उसके मौलिक दर्शन एव जीवनस्पर्शी चिन्तन के सारभूत उदात्त वचनो को एक साथ सुनियोजित करना चाहिए।