Book Title: Sukhi hone ki Chabi
Author(s): Jayesh Mohanlal Sheth
Publisher: Shailesh Punamchand Shah

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Page 12
________________ शीघ्रता से शाश्वत सुख ऐसे आत्मिकसुख की प्राप्ति के लिए ही लगाना योग्य है। ____ अब हम शाश्वत सुख ऐसे आत्मिकसुख की प्राप्ति का मार्ग बताते हैं। सर्व प्रथम मात्र आत्मलक्ष्य से, उपर्युक्तानुसार सुख की चाबीरूप शुभभावों का सम्यग्दर्शन के लिए आत्मा की योग्यता के अर्थ सेवन करना आवश्यक है, क्योंकि सम्यग्दर्शन, वह मोक्षमार्ग का दरवाजा है, अर्थात् निश्चय सम्यग्दर्शन के बिना मोक्षमार्ग में प्रवेश ही नहीं होता और मोक्षमार्ग में प्रवेश के बिना अव्याबाध सुख का मार्ग साध्य होता ही नहीं अर्थात् मोक्षमार्ग में प्रवेश और बाद के पुरुषार्थ से ही सिद्धत्वरूप मार्गफल मिलता है, अन्यथा नहीं। सम्यग्दर्शन के बिना भवकटी (भव का अंत) भी नहीं होती (होता)। सम्यग्दर्शन होने के बाद जीव अर्धपुदगलपरावर्तन काल से अधिक संसार में नहीं रहता। वह अर्धपुद्गलपरावर्तन काल में अवश्य सिद्धत्व को पाता ही है, जो कि सत्-चित्आनंदस्वरूप शाश्वत है। इससे समझ में आता है कि इस मनुष्यभव में यदि कुछ भी करने योग्य है तो वह है एकमात्र निश्चय सम्यग्दर्शन; वही सर्व प्रथम प्राप्त करने योग्य है। जिससे हमें मोक्षमार्ग में प्रवेश मिले और पुरुषार्थ स्फुरायमान होकर आगे सिद्ध पद की प्राप्ति हो। यहाँ यह समझना आवश्यक है कि जो सच्चे देव-गुरु-धर्म के प्रति कही जानेवाली श्रद्धारूप सुखी होने की चाबी *७

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