Book Title: Sukhi hone ki Chabi
Author(s): Jayesh Mohanlal Sheth
Publisher: Shailesh Punamchand Shah

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Page 57
________________ दिवस इत्यादि के महोत्सव करने योग्य नहीं अर्थात् उस दिन विशेष धर्म करने योग्य है और ऐसी भावना भाओ कि अब मुझे यह विवाहरूप मजबूरी भविष्य में कभी न होओ! जिससे मैं शीघ्रता से आत्मकल्याण कर सकूँ और सिद्धत्व प्राप्त कर सकूँ। • जन्म, वह आत्मा को अनादि का लगा हुआ भवरोग है, न कि महोत्सव, क्योंकि जिसे जन्म है, उसे मरण अवश्य है और जन्म-मरण का दुःख अनंत होता है। इसलिए जब तक आत्मा के जन्म-मरणरूप चक्रवात चलता है, तब तक उसे अनंत दु:खों से छुटकारा नहीं मिलता अर्थात् प्रत्येक को एकमात्र सिद्धत्व अर्थात् जन्म-मरण से सदा के लिए छुटकारा इच्छने योग्य है। इसलिए ऐसे जन्म के महोत्सव नहीं होते, क्योंकि कोई अपने रोग को उत्सव बनाकर महोत्सव करते ज्ञात नहीं होते। इसलिए साधक को यहाँ बताये अनुसार जन्म को अनंत दु:ख का कारण, ऐसा भवरोग समझकर जन्म-दिवस इत्यादि के महोत्सव करने योग्य नहीं है। अर्थात् उस दिन विशेष धर्म करने योग्य है। और ऐसी भावना भाओ कि अब मुझे यह जन्म, जो कि अनंत दु:खों का कारण ऐसा भवरोग है, वह भविष्य में कभी भी न होओ! अर्थात् साधक को एकमात्र सिद्धत्व की ५२ * सुखी होने की चाबी

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