Book Title: Sukhi hone ki Chabi
Author(s): Jayesh Mohanlal Sheth
Publisher: Shailesh Punamchand Shah

View full book text
Previous | Next

Page 58
________________ प्राप्ति के लिए अर्थात् अजन्मा बनने के लिए ही सर्व पुरुषार्थ लगाने योग्य है। • कोई भी प्रत्याख्यान = पच्चक्खाण धारणा अनुसार, सीमंधर भगवान की साक्षी से तीन नमस्कार मंत्र गिन कर लेना और प्रत्येक प्रत्याख्यान = पच्चक्खाण में अनजानपने के, असमाधि के, स्वास्थ्य के निमित्त से दवा के और अन्य कोई भी उपसर्ग के आगार, ऐसे धाररखना, कोई भी प्रकार के प्रत्याख्यान=पच्चक्खाण पालने की विधि जो ( प्रत्याख्यान का नाम बोलना ) प्रत्याख्यान=पच्चक्खाण किये थे, वे पूर्ण होने पर पालता हूँ। समकाएणं, न फासियं, न पालियं, न तिरियं, न किट्टियं, न सोहियं, न आराहियं, आणाए अणुपालियं, न भवई तस्स मिच्छामि दुक्कडं! तीन बार नमस्कार मंत्र गिनना । • अनादि से पुद्गल के मोह में और उसी की मारामारी में जीव दंडित होता आया है अर्थात् उसके मोह के फलरूप से वह अनंत दु:ख भोगता आया है। इसलिए शीघ्रता से पुद्गल का मोह छोड़ने योग्य है। वह मात्र शब्द में नहीं, जैसे कि धर्म की ऊँची-ऊँची बातें करनेवाले भी पुद्गल के मोह में फँसे हुए ज्ञात होते हैं, नित्य चिंतन कणिकाएँ ५३

Loading...

Page Navigation
1 ... 56 57 58 59