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विस्मृत करता हूँ! अब मुझे इन सर्व के साथ कोई संबंध ही नहीं। वोसिरामी! वोसिरामी !! वोसिरामी !!! तीन मनोरथ आरंभ परिग्रह तजकर, कब होऊँ व्रतधर; अंत समय आलोचना, करूँ संथारा सार । नित्य सोते समय सागारी संथारा धारण करना-आहार, शरीर और उपधी पचक्खू, पाप अठारह; मरण आवे तो वोसिरे, जिऊँ तो आगार ।
नित्य सुबह-शाम माता-पिता को प्रणाम करना, अवकाश के दिन इस प्रतिक्रमण के अर्थ समझना और चिंतवन करना, , जिन्हें सुबह / शाम को समय न मिले, वे यह प्रतिक्रमण जब समय मिले तब कर सकते हैं। दूसरे, नित्य - जब भी समय मिले, नमस्कार मंत्र का स्मरण करना। कोई भी शास्त्र पढ़ते हुए याद रखना कि - यह मैं मेरे लिये पढ़ता हूँ। इसमें बताये गए सर्व भाव मेरे जीवन में उतारने योग्य हैं। तीसरा, हमेशा याद रखना कि अच्छा वह ही मेरा - सच्चा वह ही मेरा; नहीं कि मेरा वह अच्छामेरा वह सच्चा; और जो सच्चा मिले, उसे स्वीकार करने को तैयार रहना, मिथ्या मान्यताएँ छोड़ने को (बदलने) तैयार रहना । मत-पंथ-संप्रदाय - व्यक्ति विशेष का आग्रह छोड़ देना।
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सुबह उठकर... २९