Book Title: Sukhi hone ki Chabi
Author(s): Jayesh Mohanlal Sheth
Publisher: Shailesh Punamchand Shah

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ नित्य चिंतन कणिकाएँ • एक समकित पाये बिना, जप तप क्रिया फोक । जैसा मुर्दा सिनगारना, समझ कहे तिलोक ।। अर्थात् – सम्यग्दर्शन रहित सर्व क्रिया - जप-तपश्रावकपना, क्षुल्लकपना, साधुपना इत्यादि मुर्दे को शृंगारित करने जैसा निरर्थक है। यहाँ कहने का भावार्थ यह है कि ऐसे सम्यग्दर्शन के बिना क्रिया - तप - जप श्रावकपना, क्षुल्लकपना, साधुपना भव का अंत करने में कार्यकारी नहीं है अर्थात् वे नहीं करना ऐसा नहीं, परंतु उनमें ही संतुष्ट नहीं हो जाना अर्थात् उनसे ही अपने को कृतकृत्य न समझकर, सर्व प्रयत्न एकमात्र निश्चय सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिए ही करना । • भगवान के दर्शन किस प्रकार करना ? भगवान के गुणों का चिंतवन करना और भगवान, भगवान बनने के लिए जिस मार्ग पर चले, उस मार्ग पर चलने का दृढ़ निर्णय करना, वही सच्चे दर्शन हैं। • संपूर्ण संसार और सांसारिक सुख के प्रति वैराग्य के बिना अर्थात् संसार और सांसारिक सुखों की रुचिसहित मोक्षमार्ग की शुरुआत होना अत्यंत दुर्लभ है अर्थात् सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होना अत्यंत दुर्लभ है। ४२ : सुखी होने की चाबी

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59