Book Title: Sukhi hone ki Chabi
Author(s): Jayesh Mohanlal Sheth
Publisher: Shailesh Punamchand Shah

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Page 38
________________ और उसमें ही सुधार करना चाहिए। दूसरे क्या करते हैं?' अथवा 'दूसरे क्या कहेंगे?' इत्यादि न सोचकर अपने लिए क्या योग्य है यह सोचना। आर्तध्यान और रौद्रध्यान के कारण का सेवन नहीं करना और यदि भूल से, अनादि के संस्कारवश आर्तध्यान और रौद्रध्यान हुआ हो तो तुरंत ही उसमें से परान्मुख होना (प्रतिक्रमण); उसका पश्चात्ताप करना (आलोचना) और भविष्य में ऐसा कभी न हो (प्रत्याख्यान)-ऐसा दृढ़ निर्धार करना। इस प्रकार दुर्ध्यान से बचकर, पूर्ण यत्न संसार के अंत के कारणों में ही लगाना योग्य है। ऐसी जागृति पूर्ण जीवन के लिए आवश्यक है, तब ही मरण के समय जागृति सहित समाधि और समत्वभाव रहने की संभावना रहती है कि जिससे समाधिमरण हो सके। सर्वजनों को ऐसा समाधिमरण प्राप्त हो ऐसी भावना के साथ.... जिन-आज्ञा से विरुद्ध हमसे कुछ भी लिखा गया हो तो त्रिविध-त्रिविध हमारे मिच्छामि दुक्कडं! ॐ शांति! शांति! शांति! समाधिमरण चिंतन * ३३

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