Book Title: Sukhi hone ki Chabi
Author(s): Jayesh Mohanlal Sheth
Publisher: Shailesh Punamchand Shah

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ का सिद्धांत। अपने वर्तमान दुःख का कारण अपने पूर्व में किये हुए पापकर्म ही हैं। इसलिए यदि आप दु:ख नहीं चाहते हो तो वर्तमान में आप दूसरे को दुःख देना बंद करो और भूतकाल में आपने जो दुःख दूसरों को दिया हो, उसका पश्चात्ताप करो, उसका चिंतवन करके मन में पश्चात्ताप करोमाफी मांगो। यहाँ किसी को प्रश्न होता है कि जगत में तो पापी भी पुजते हुए ज्ञात होते हैं, अत्यंत सुखी ज्ञात होते हैं। तो उसका उत्तर ऐसा है कि वह उनके पूर्व पुण्य का ही प्रताप है, जबकि पापी को वर्तमान में बहुत गाढ़े पापों का बंध होता ही है, जो कि उसके अनंत भविष्य में अनंत दुःखों का कारण बनने के लिए शक्तिमान होते हैं। इसलिए किसी के भी वर्तमान उदय पर दृष्टि नहीं करनी, क्योंकि वह तो उसके भूतकाल के कर्म पर ही आधारित होते हैं, परंतु मात्र वर्तमान पुरुषार्थ पर दृष्टि करने जैसी है, क्योंकि वही उसका भविष्य है अर्थात् कोई अपना वर्तमान उदय बदल सकने को प्रायः शक्तिमान नहीं है परंतु अपना भविष्य बनाने (गढ़ने) में शक्तिमान है और इसलिए ही जीव पुरुषार्थ करके सिद्धत्व भी पा सकता है। इसलिए ही अपने उदय पर दृष्टि न करके अर्थात् उसमें इष्ट-अनिष्ट बुद्धि न करके मात्र और मात्र आत्मार्थ के लिए ही पुरुषार्थ करने योग्य है। सुखी होने की चाबी ५

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59