Book Title: Sukhi hone ki Chabi
Author(s): Jayesh Mohanlal Sheth
Publisher: Shailesh Punamchand Shah

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Page 27
________________ खमासमणाणं, राइया (शामको देवसिया बोलना ) आसायणाऐ तित्तीसन्नयराए जंकिंचि मिच्छाए, मण दुक्कडाए, वय दुक्कडाए, काय दुक्कडाए, कोहाए, माणाए, मायाए, लोहाए सव्व कालियाए, सव्व मिच्छोवयाराए, सव्व धम्माईक्कमणाए साया जो मे राइओ (शाम को देवसिओ बोलना ) अइयारो कओ तस्स खमासमणो! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि। स्वामीनाथ ! सामायिक एक, चउविसंत्थो दो और वंदना तीन, यह तीनों आवश्यक पूरे हुए। इनके विषय में श्री वीतरागदेव की आज्ञा में कानो, मात्रा, बिंदी, पद, अक्षर, गाथा, सूत्र, कम, अधिक, विपरीत पढ़ा गया हो, तो अरिहंत, अनंत सिद्ध भगवंतों की साक्षी सह तस्स मिच्छामि दुक्कडं ! चौथे आवश्यक की आज्ञा ! ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप के विषय में जो अतिचार लगे हो वे आलोचता हूँ - ऐसा पढ़ते हुए, गिनते हुए, चिंतन करते हुए चौदह प्रकार के कोई पाप - दोष लगे हों, तो अरिहंत, अनंता सिद्ध भगवंतों की साक्षी सह तस्स मिच्छामि दुक्कडं ! और समकितरूप रत्न के विषय में मिथ्यात्वरूप रज, मेल, दोष लगा हो, तो अरिहंत, अनंत सिद्ध भगवान की साक्षी सह तस्स मिच्छामि दुक्कडं । अब प्रत्येक पापों के जो भी दोष लगे हों, उसकी चिंतवना करना और माफ़ी मांगना। हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्म - कामभोग, परिग्रह, भोग-उपभोग, कर्मदान का धंधा (व्यापार), अनर्थदंड, २२ • सुखी होने की चाबी

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