Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri Publisher: Abhaydevsuri View full book textPage 2
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्था नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ १ ॥ 197990798246YAKKES *9595493979 www.kobatirth.org सामान्य केवलीओना स्वामी श्री महावीरप्रभुने नमस्कार करीने स्थानांग ( ठाणांग ) सूत्रना केटलाएक पदोनुं, प्रायः अन्य शास्त्रोवडे जेम जोवाएलुं छे तेम ( अन्य शास्त्रो जोईने ), हुं कईक विवरण - विवेचन करूं हूं. शास्त्रप्रस्तावना. अहिं महान् राजानी जेम उत्कृष्ट आत्मिक शक्तिवडे दबाव्या छे पराक्रमवाला रागादि शत्रुओ जेणे, आज्ञानुं पालन करवामां चतुर एवा सेंकडो राजाओवडे हंमेशां सेवायेल छे चरणकमल जेना, समस्त पदार्थना समूहने प्रत्यक्ष करवामां दक्ष एवा केवलज्ञान अने केवळदर्शनरूप श्रेष्ठ उपयोगवडे जाण्यो छे सर्व विषयग्राम ( समूह ) नो स्वभाव जेणे, समस्त त्रण भुवनमां अतिशयबाळं छे साम्राज्य जेनुं, तथा संपूर्ण न्यायप्रवर्त्तक, इक्ष्वाकु कुलनी वृद्धि करनार, प्रसिद्ध एवा सिद्धार्थ राजाना पुत्र, श्रमण भगवान श्रीमान् महावीर - वर्द्धमानस्वामीना अतिशय गंभीर अने महान् अर्थ छे जेने विषे एवा (त्रिपदीरूप ) उपदेशी कुशल बुद्धयादि गुणना समूहरूप माणिक्यनी रोहणाचल भूमि समान, नियुक्त थयेल भंडारीनी माफक श्री गणधरमहाराजावडे पूर्वकालमा चार तीर्थ ( संघ ) मां श्रेष्ठ श्री श्रमण संघना अने तेना संतानो ( शिष्यो ) ना उपकारने माटे रचायेल तथा अनेक प्रकारना अर्थरूप श्रेष्ठ रत्नो छे जेमां, वली देवता अधिष्ठित एवा ( महानिधान समान ठाणांग सूत्रनो ) ज्ञान अने क्रियामां बलवान छतां य कोई पण (पूर्व) पुरुषबडे कई पण कारणवशात् अप्रकाशित (व्याख्या न करावेल) अने ए कारणथी केटलाक भवभीरुना ( कदाच अर्थनो अनर्थ थाय एवा भयथी) विचारमां ( व्याख्या करवानुं ) नहिं आवेल एवा मोटा खजानारूप आ ठाणांगसूत्रनो (अनुयोग अमारावडे कराय छे ) जो के तेवा प्रकारना ज्ञानादि बल रहित छतां पण केवल For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir = १ स्थाना ध्ययने शास्त्रप्रस्तावना. ॥ १ ॥Page Navigation
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