Book Title: Sthanang Sutram Part 02
Author(s): Vijaychandrasguptasuri
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीस्थानाङ्ग श्रीअभय० वृत्तियुतम् श्रीस्थानाङ्गGERA विषयानुक्रमः भाग-२ // 1 // 5.1 ॥श्रीस्थानाङ्गसूत्रस्य विषयानुक्रमः॥ द्वितीयविभागस्य सूत्रसङ्ख्या श्लोक 389-783 (395), पृष्ठ 515-936 (422) क्रमः विषयः सूत्रम् पृष्ठ: / क्रम: विषयः सूत्रम् पृष्ठः // द्वितीयो विभागः॥ 5.1.5 दुराख्यात- स्वाख्यातादिभिर्दुर्गम॥ पश्चममध्ययनं पञ्चस्थानम् // 389-474 515-623 सुगमे, क्षान्त्यादि-सत्यादि- उत्क्षिप्त पञ्चमाध्ययने प्रथमोद्देशक: 389-411 515-547 चरत्वादि- अज्ञातचरत्वादि५.१.१ महाव्रता- ऽणुव्रतानि। 389516 उपनिहितादि-आचाम्लादि५.१.२ वर्ण- रस-काम-गुणभेदा, अरसाहारादि-अरसजीवित्वादिसंगादिविनिघातहेत्वहित-हित स्थानादिदानादि- दण्डायतिकादीनि दुर्गति- सुगति- हेतवः (13), 50 अभ्यनुज्ञातानि, अग्लान्या प्राणातिपात- तद्विरमणादिभि दशविधेन वैयावृत्त्येन महानिर्जरा। 396-397 526 र्दुर्गति- सुगती। 390-391 518 5.1.6 विसंभोग- पाराश्चिककारणानि, भद्राद्याः प्रतिमाः (तत्स्थापना), विग्रहा- विग्रहस्थानानि, उत्कुटुकादिइन्द्राद्याः स्थावरा, अवधि निषद्या- 5ऽर्जवस्थानानि दर्शनोत्पादक्षोभाऽक्षोभाः। 392-394 519-520 (सूत्राध्ययनपर्यायाः)। 398-400 532-533 5.1.4 शरीरवर्ण- रसभेदीदारिकवर्णादि, 5.1.7 चन्द्रादि- भव्यद्रव्यादिदेवाः, (शरीरस्वरूपम् ) / 395 523-524 कायादिपरिचारणाः, चमर- बल्य 5.1.3
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