Book Title: Sthanang Sutram Part 02
Author(s): Vijaychandrasguptasuri
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीशान श्रीस्थानाङ्गं श्रीअभय० वृत्तियुतम् 8.12 भाग-२ नक्रमः विषयः सूत्रम् पृष्ठः क्रमः विषयः सूत्रम् पृष्ठः नारकाद्याः प्राग्भारान्ता गतयः, संयमाः, रत्नप्रभादिपृथ्वी-सिद्धिगङ्गादिद्वीपमानम्, उल्कामुखाद्यायामः, शिलामध्यविष्कम्भमानानि। 645-648 780 कालोदविष्कम्भः, अभ्यन्तर-बाह्य पराक्रमणीयस्थानानि महाशुक्रपुष्करा विष्कम्भः, काकिणि सहस्रारविमानोच्चत्वम्, रत्नमानम्, मागधयोजनधनूंषि। 628-634 769-770 नेमिवादिनः। 649-651 782 जम्ब्वाधुच्चत्वादि, तिमिम्रा केवलिसमुद्धातः। 652 783-784 गुहाधुच्चत्वम्, जम्बूपूर्व-पश्चिम 8.17 वीरानुत्तरौपपातिकसम्पत्, व्यन्तरभेदसीतासीतोदोत्तरदक्षिणविजय चैत्यवृक्षाः, सूर्यविमानचाराबाधा, तद्राजधान्यः, उत्कृष्टपदजिनादयः, प्रमर्दयोगनक्षत्राणि, द्वीपसमुद्रद्वारोच्चत्वम्, दीर्घवैतादयतिमिस्रादिगुहाप्रभृतयः, पुरुष- वेद- यश:कीयुच्चैर्गोत्राणां मेरुचूलामध्यविष्कम्भः, धातकी जघन्या स्थिति:, त्रीन्द्रियकुलकोट्यः, वृक्षोच्चत्वादि, दिग्हस्तिकूटानि, पुद्गलानां चयनादि, जगत्या उच्चत्वम् महाहिमवद्-रुक्मि अष्टप्रदेशिकादि च। 653-660 784-785 रुचकादिकूटानि, दिक्कुमार्यः, // नवममध्ययनं नवस्थानम् // 661-703 787-833 तिर्यग्मिश्रोत्पन्नकल्पतदिन्द्र विसंभोगकारणानि, ब्रह्मचर्यापारियानिकविमानानि। 635-644 771-775 ध्ययनानि, ब्रह्मचर्यगुप्तयः। 661-663787 अष्टाष्टमिकाभिक्षाः, संसार 9.2 अभिनन्दन- सुमत्यन्तरम्, जीवादिसमापन्नसर्वजीवभेदाः, प्रथमसमयादि सद्भावपदार्थाः, संसारसमापन्नभेद // 9 // 8.14
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