Book Title: Sramana 2008 07
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 14
________________ एक उदार दृष्टिकोण का पक्षधर है- जैन दर्शन का 'स्याद्वाद' : ९ लेकिन स्याद्वाद हमें अपने कथनों में 'मताग्रह से बचने के लिए सावधान करता है। जैन दर्शन में स्याद्वाद के साथ दार्शनिक सूक्ष्मता और बारीकी मानों अपने चरम पर है। एक आधुनिक व्याख्याकार स्वामी सुखबोधानंद ने स्याद्वाद को एक चीनी दंतकथा के माध्यम से बहुत ही आकर्षक रूप से स्पष्ट किया है 'एक गरीब किसान को अपने खेत में एक सुन्दर काला घोड़ा घास चरते हुए मिल गया। वह इतना सुन्दर और सुगठित था कि राजा ने जब इस आश्चर्यजनक घोड़े के बारे में सुना तो उसने उसे खरीदना चाहा। इसके लिए वह किसान को एक बड़ी रकम देने के लिए तैयार था। लेकिन किसान ने उसे बेचने से विनयपूर्वक इन्कार कर दिया। गाँव वालों ने इस पर किसान से कहा, तुम बड़े मूर्ख हो जो तुमने घोड़ा बेचने से राजा को मना कर दिया। किसान बोला- 'हो सकता है। कुछ दिनों बाद घोड़ा कहीं भाग गया और ढूँढने पर भी नहीं मिला। इस पर गांववालों ने किसान को फिर कहा'देखो, घोड़ा बेंच देते तो आज यह नौबत न आती, तुम सचमुच एकदम मूर्ख हो।' किसान ने फिर से अपनी वही बात दोहरा दी- 'हो सकता है। लेकिन सौभाग्य से कुछ समय बाद घोड़ा न केवल वापस आ गया, बल्कि उसके साथ बीस अन्य घोड़े भी आ गए। गाँव वाले यह देखकर हैरान थे। बोले, सच, तुम तो अक्लमंद निकले। आज तुम्हारे पास इक्कीस घोड़े हो गए। लेकिन किसान ने अपनी वही बात फिर दोहरा दी- 'हो सकता है।' एक बार किसान का इकलौता बेटा जब अपने पिता के घोड़ों को प्रशिक्षित कर रहा था तो वह एक घोड़े की पीठ से गिर गया और उसकी एक टांग टूट गई। इसी बीच चीन में युद्ध छिड़ गया जिसमें सभी समर्थ युवकों को सेना में भर्ती करने के आदेश दे दिए गए। किंतु किसान का बेटा बच गया- उसकी एक टाँग टूटी थी। इस पर गांव वालों ने किसान से कहा, तुम सचमुच भाग्यवान हो। तुम्हारा बेटा सेना में भर्ती होने से बच गया अन्यथा वह भी युद्ध में मारा जाता। किसान ने इस बार भी वही प्रतिक्रिया की- 'हो सकता है।' इसमें कोई संदेह नहीं कि हम यदि निश्चयात्मक कथन न कहकर अपनी बात किन्हीं ऐसे वाक्यांशों की सहायता लेकर रखें जो वाक्य की निश्चयात्मकता को समाप्त कर दे, तो ऐसी तमाम स्थितियों से बचा जा सकता है जो अनावश्यक मतभेद और संघर्ष को जन्म देती हैं। ऐसे अनेक वाक्यांश हो सकते हैं- 'जहाँ तक मैं समझता हूँ, 'एक हद तक', मुझे ऐसा प्रतीत होता है इत्यादि। ये सभी वाक्यांश 'स्यात्' में निहितार्थ की पूर्ति करते हैं। हमारा जीवन एक-दूसरे से हमारे सम्बन्धों पर टिका हआ है। यदि इन सम्बन्धों को हम खुला रखें तो जीवन को प्राणवायु मिलती है। यदि कोई कहे कि अमुक व्यक्ति बेवकूफ है तो स्पष्ट ही वह स्याद्वाद का पालन नहीं कर रहा होता है और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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