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जीवदया : धार्मिक एवं वैज्ञानिक आयाम
की जाती है। सरकारी योजनाएं भी बाघों की रक्षा के लिए चलायी जाती हैं। अतः सामान्य लोग यही समझने लगे हैं कि किसी तरह बाघों को बचाने से पर्यावरण का संतुलन रखा जा सकता है । यद्यपि यह विचारधारा सरासर गलत है, तथापि सही जानकारी के अभाव में यही 'वैज्ञानिक सत्य' माना जाता है।
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यह सच है कि बाघ जैसे जंगली पशुओं की संख्या बहुत कम हो गयी है। इनकी रक्षा बहुत जरूरी है क्योंकि निसर्ग में इन जानवरों के लुप्त होने का डर है। इनके मूल कारणों की अनदेखी करते हुए वन्य पशु- सम्पदा बढ़ाना असम्भव है। बाघ, तेंदुए जैसे जानवर अब भी उनकी खाल के लिए मारे जाते हैं। उनकी रक्षा के लिए जगह-जगह अभयारण्य बनाये गये हैं जहां ऐसे जानवरों का सुरक्षित रखने का प्रबन्ध शासन द्वारा किया गया है। वनों का क्षेत्रफल कम होने के कारण हिरण, नीलगाय जैसे जानवरों की संख्या भी बहुत कम हो गयी है । फलस्वरूप बाघों को पर्याप्त मात्रा में खाना नहीं मिलता। अतः उन्हें सूअर, गाय जैसे पालतू जानवरों का गोश्त दिया जाता है। इसके लिए सरकारी अनुदान है परन्तु वह भी अपर्याप्त है। इस कारण अभयारण्य के बाघ, तेंदुए तथा अन्य मांसाहारी पशु आसपास के गांवों में आकर किसानों के पालतू जानवर मारकर खा जाते हैं। कभी-कभी बाघ तथा तेंदुए नरभक्षी बनकर आतंक मचाते हैं।
जीवदया का समर्थन करनेवाली कई राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय निजी संस्थाएं हैं। उनके कार्यक्रमों से उनकी अप्रामाणिकता दिखाई देती है। उनकी दृष्टि में सिंह, बाघ, तेंदुए, मगरमच्छ, कुछ चुनिंदा किस्म के कछुए आदि जीव ही दया - पात्र हैं। अन्य जीवों की हत्या करके उनके विशिष्ट प्रेमपात्र जानवरों को किसी तरह जीवित रखने में कोई तार्किक संगति दिखाई नहीं देती। वे अपने कार्यक्रमों को निसर्गसंगोपन की संज्ञा देते हैं । वास्तव में उनके कार्य का उद्देश्य प्रसिद्धि पाना है। उनके विचारों का खंडन करने वाले न होने के कारण वे कामयाब भी हो रहे हैं।
(ख) जीवों के मूलभूत अधिकार
जानवरों के प्रति मानव का व्यवहार अधिकाधिक बर्बर होता जा रहा है, ऐसी धारणा अब पश्चिमी देशों में प्रबल हो गयी है। अतः प्राणिहिंसा पर रोक लगाने के लिए कई कानून बनाये गये हैं। भारत में भी ब्रिटिश शासन काल में कुछ कानून जारी किये गये थे। स्वतंत्रता के बाद ये कानून परिष्कृत किये गये । पुराने कानून को बदलकर १९६० में एक नया कानून बनाया गया जो तत्पश्चात् समय पर संशोधित भी किया गया।१९ आश्रित तथा दमयित जानवर इस कानून की परिधि में आते हैं। इस कानून में झींगे, खेकड़े आदि जीव प्राणिवर्ग में नहीं गिने जाते। यह कानून की
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