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१० : श्रमण, वर्ष ५६, अंक १-६/जनवरी-जून २००५
क्रूरता है और इसका किसी नीति-नियम से समर्थन नहीं हो सकता। और भी प्रकार के हिंसा कार्य अपनाये जाते हैं जिनका विभत्स वर्णन यहां करना उचित नहीं होगा। भाकड़ी गाय तथा कमजोर बूढ़े बैलों को कसाईखाने में भेजा जाता है।१३ यह सारा बर्बरतापूर्ण व्यवहार डेरी के 'अर्थविज्ञान' में क्षम्य माना जाता है। स्पष्ट है कि आश्रित जानवरों के प्रति दयाभाव तथा योगक्षेम का दायित्व अपनाना सदाचार है। इसके विपरीत आश्रित जानवरों के हित का ध्यान न रखते हुए स्वार्थ के लिए उन्हें यातना पहुंचाना गलत है।
२. 'दमयित' शब्द का अर्थ है दमन के द्वारा अधीन किया हुआ जीव । हाथी इस वर्ग का सबसे अच्छा उदाहरण है। हाथी स्वतंत्र जंगली जानवर है। हाथी की नस्ल के संगोपन की बाध्यता मानव की नही हैं। वन्य अवस्था में वे अपनी रक्षा, भरणपोषण करने में समर्थ हैं। मानव ने उन्हें पकड़कर उनसे काम की कला हस्तगत की है। उनके संदमन में कई प्रकार के हिंसक तरीके अपनाये जाते हैं जो वैज्ञानिक व्यावहारिकतावाद के अनुसार समर्थनीय नहीं हैं। अपने मनोरंजन के लिए सिंह, बाघ, भालू, बन्दर आदि जानवर बन्धन में रखे जाते हैं। सर्कस आदि खेलों से विकृत मानसिकता का आनन्द लेना अनैतिक है। अन्य जीवों को पीड़ा देते हुए मनबहलाव करने की तामसी प्रवृत्ति से उभर कर दूसरे अहिंसक मनोरंजन के साधन अपनाना ही नैतिकता है। चिड़ियाघरों में भी कई स्वतंत्र वर्ग के जानवर बंधन में रखे जाते हैं। चिड़ियाघरों के बारे में हमें शिक्षा मिलती है, ऐसी दलील दी जाती है। वास्तव में ऐसे जानवरों से मिलने वाली शिक्षा न के बराबर है। जानवरों का दमन करने में मानव का 'पराक्रम' दिखाना ही चिड़ियाघरों का मूल उद्देश्य था।१४
आधुनिक विज्ञान की शिक्षा के लिए तथा वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए चूहे, खरगोश, बन्दर आदि जानवरों का प्रयोग किया जाता है।१५ इस पर रोक लगाने से विज्ञान की प्रगति रुक सकती है। वर्तमान परिस्थिति में इस प्रकार की हिंसा क्रमश: कम करते हुए अनुसंधान के पर्यायी तरीके विकसित करना ही उचित है। कई वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए अब अहिंसात्मक पर्याय उपलब्ध हैं। इसी दिशा में प्रयास जारी रखते हुए अन्त में ज्ञान प्राप्ति के लिए जीव-हिंसारहित तरीके विकसित करने का आदर्श अपनाना चाहिए।
जीवविज्ञान में अनुसंधान के फलस्वरूप आये दिन नयी उपलब्धियां हासिल हो रही हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि जिज्ञासापूर्ति तथा आयुर्विज्ञान की प्रगति के लिए जानवरों पर प्रयोग करना आवश्यक है। ऐसे प्रयोगों में हिंसा अनिवार्य है। जीवदया का समर्थन करनेवाले कई निजी संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। कभी-कभी वे विरोध प्रदर्शित करने के लिए प्रयोगशालाओं में घुसकर तोड़-फोड़ जैसी हिंसा भी
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