________________
पल्लवनरेश महेन्द्रवर्मन "प्रथम" कृत मत्तविलासप्रहसन में वर्णित
धर्म और समाज
-दिनेश चन्द्र चौबीसा
संस्कृत साहित्य का कलेवर बहु-आयामी है। संस्कृत के दृश्य-पक्ष की एकाधिकता विपुल नाट्य-साहित्य की थाती है। संस्कृत-नाटकों में लोकजीवन व उनकी आस्था से सम्बद्ध धार्मिक पक्ष की सामग्री अत्यल्प है क्योंकि अधिकतर नाटक राजाओं की प्रेम-कहानियों पर आधारित हैं। इनमें लोक जीवन के कहकहे, कलह, बेबसी, भुखमरी, सामाजिक व धार्मिक परिवेश में धर्म का निर्वाह आदि के असली चित्रों को उघाड़ा नहीं गया है। धार्मिक व सामाजिक जीवन से जुड़े कटु-सत्यों का कच्चा चिट्ठा रुपक के ही भेद-प्रहसनों में खुलकर सामने आया। भारतीय संस्कृति को अक्षुण्ण बनाये रखने व विविधता में एकता के सूत्र को सार तत्त्व के रूप में सामाजिकों तक पहुँचाने के लिए स्वाभिमान के धनी लेखकों ने अपयश की चिन्ता किये बिना हलका कहा जाने वाला ( प्रहसन) साहित्य रचा। मत्तविलास इस श्रेणी का एक प्रहसन है इसमें विभिन्न धर्मों की तात्कालिक अवस्थिति को स्पष्ट कर, उनमें व्याप्त बुराइयों को समाज के सामने लाने का प्रयास किया गया है। धार्मिक पाखण्डियों का पर्दाफाश कर उन्हें जन-अदालत में खड़ा किया गया है। कर्तव्य के क्रियात्मक स्वरूप व जीवन-उद्धारक नीति-तत्त्व समाज को तोड़ते नहीं, अपितु बाँधते हैं, धर्म समस्त विश्व को प्रतिष्ठा देने वाला स्थिर तत्त्व है -- धर्मों विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा, इसी अमोघ मन्त्र को मत्तविलास में प्रतिपादित किया गया है। ___ 1. शैव धर्म वैदिक धर्म की एक शाखा है। शैव धर्म की कई शाखाएँ पल्लवित हुईं, इसमें पाशुपत, कापालिक, वीर-लिंगायत आदि प्रमुख हैं। इन सभी सम्प्रदायों के आराध्य देव शिव
शिव की उपासना प्रत्येक शैव सम्प्रदाय में भिन्न-भिन्न ढंग से की जाती थी। कापालिक-सम्प्रदाय में अनेक समाज विरोधी प्रवृत्तियाँ समाहित हो गयी थीं।
कापालिक, इहलौकिक और पारलौकिक अभीष्ट इच्छाओं की पूर्ति के लिए निम्नलिखित उपायों को जीवन में आत्मसात कर चुके थे :-- 1. स्त्री समागम के लिए लालायित रहना, सुरापान करना। 2. नशेड़ी-जीवन -- इनके जीवन में नशा रच-पच गया था। हर समय सुरा पीने की बात
इनके मुख से सुनाई पड़ती थी।
Jain Education International
For Private &
rsonal Use Only
www.jainelibrary.org