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3. न्यायावतारवृत्ति की दाता प्रशस्ति-- आचार्य सिद्धसेन दिवाकर प्रणीत न्यायावतारसूत्र पर निर्वृत्तिकुलीन सिद्धर्षि द्वारा रचित वृत्ति [ रचनाकाल - विक्रम सम्वत् की 10वीं शती के तृतीय चरण के आस-पास ] की वि. सं. 1453 में लिपिबद्ध की गयी एक प्रति की दाता प्रशस्ति' में सार्धपूर्णिमागच्छीय अभयचन्द्रसूरि के शिष्य रामचन्द्रसूरि का उल्लेख है । इस प्रशस्ति से यह भी ज्ञात होता है कि उक्त प्रति रामचन्द्रसूरि के पठनार्थ लिपिबद्ध करायी गयी थी । इन्हीं रामचन्द्रसूरि ने वि. सं. 1590 / ईस्वी सन् 1534 में विक्रमचरित' की रचना की ।
4. सम्यकत्वरत्नमहोदधि वृत्ति की दाताप्रशस्ति - पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक आचार्य चन्द्रप्रभसूरि कृत सम्यकत्त्वरत्नमहोदधि अपरनाम दर्शनशुद्धि [ रचनाकाल - विक्रम सम्वत् की 12वीं शती के मध्य के आस-पास ] पर पूर्णिमागच्छ के ही चक्रेश्वरसूरि और तिलकाचार्य द्वारा रची गयी वृत्ति [ रचनाकाल-विक्रम सम्वत् की 13वीं शती के मध्य के आस-पास 1 की वि. सं. 1504 में लिपिबद्ध की गयी प्रति की दाताप्रशस्ति में सार्धपूर्णिमागच्छ के पुण्यप्रभसूरि के शिष्य जयसिंहसूर का उल्लेख है । उक्त प्रशस्ति से इस गच्छ के किन्हीं अन्य मुनिजनों के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती ।
5. आरामशोभाचौपाइ यह कृति सार्धपूर्णिमागच्छ के विजयचन्द्रसूरि के शिष्य [ श्रावक ? ] कीरति द्वारा वि.सं. 1535 / ईस्वी सन् 1479 में रची गयी है । ग्रन्थ की प्रशस्ति' के अर्न्तगत रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है :
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सार्धपूर्णिमागच्छ का इतिहास
रामचन्द्रसूरि
I
पुण्यचन्द्रसूरि
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विजयचन्द्रसूरि
6. आवश्यकनिर्युक्तिबालावबोध की प्रतिलिपि की प्रशस्ति सार्धपूर्णिमागच्छीय विद्याचन्द्रसूरि ने वि. सं. 1610 में उक्त कृति की प्रतिलिपि करायी । इसकी दाताप्रशस्ति में उनकी गुरु- परम्परा का विवरण मिलता है, जो इस प्रकार है :
उदयचन्द्रसूरि
कीरति [ वि.सं. 1535 / ई. सन् 1479 में आरामशोभाचौपाइ के रचनाकार ]
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मुनिचन्द्रसूरि
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विद्याचन्द्रसूरि [ वि. सं. 1610 में इनके उपदेश से आवश्यकनियुक्ति बालावबोध की प्रतिलिपि की गयी 1
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