Book Title: Sirichandvejjhay Painnayam
Author(s): Purvacharya, Kalapurnasuri, Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti
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इत्तो जो परिहीणो गुणेहिं गुणसयनयोववेएहिं ।
पुत्तं पि न वाएज्जा किं पुण सीसं गुण विहीणं ॥ ५१ ॥
उक्त विनयादि गुण हीन और अन्यनयादि शतादि गुण युक्त ऐसे पुत्र को भी हितैषी पंडित शास्त्राध्ययन नहीं कराता तो सर्वथा गुण हीन शिष्य को शास्त्रज्ञान किस प्रकार करवाया जाय ?
एसा सीसपरिक्खा कहिया निउणत्थ सत्य उवइट्ठा । सीसो परिक्खियव्वो पारतं मग्गमाणेण ॥ ५२ ॥
निपुण - सूक्ष्म अर्थयुक्त शास्त्रो में विस्तार पूर्वक दर्शित यह शिष्य परीक्षा संक्षेप में दर्शायी है । पारलौकिक हिताकांक्षी गुरु को शिष्य की परीक्षा अवश्य करनी चाहिए ।
सीसाणं गुणकित्ती एसा मे वन्निया समासेणं ।
विणयस्स निग्गहगुणे ओहियहियया निसामेह ॥ ५३ ॥
सुशिष्यों के गुणों का कीर्तन संक्षेप में मैंने किया । अब विनयके निग्रहजय से प्राप्त गुणों का वर्णन करूंगा, वह तुम सावधान चित्तयुक्त होकर, सुनों ।
' विनय निग्रह जय गुण'
विणओ मुक्खद्दारं विणयं माहु कयावि छड्डिज्जा । अप्पसुओवि हु पुरिसो विणएण खवेइ कम्माई ॥ ५४ ॥
विनय मोक्ष का द्वार है अतः मोक्षेच्छा वाले को विनय कभी नहीं छोडना चाहिए | क्यों कि अल्प श्रुत ज्ञानी विनय से सभी कर्मोंका क्षय कर देता है । जो अविणीयं विणएण जिणइ सीलेण जिणइ निस्सीलं । सो जिणइ तिन्निलोए पावमपावेण सो जिणइ ॥ ५५ ॥
जो जीव अविनय को विनय से, दुराचार को सदाचार से, और पापअधर्म को धर्म से जीत लेता है । वह तीनों लोक को जीत लेता है । [ अर्थात् विनय से तीन भुवन का पूज्य पंद तीर्थंकर पद प्राप्त कर सिद्धपद पा लेता है ।]
जइवि सुयनाणकुसलो होइ नरो हेउकारणविहिनू /
अविणीयं गारवीयं न तं सुयहरा पसंसंति ॥ ५६ ॥
जो जीव मुनि श्रुतज्ञानमें निपुण हो, हेतु, कारण, विधि का ज्ञाता हो पूर्वाचार्य रचित 'सिरिचंदावेज्झय पइण्जयं'
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